________________ 294] [निशीथसूत्र ___29. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों को धातु बताता है या बताने वाले का अनुमोदन करता है। 30. जो भिक्षु अन्यतीथिकों या गृहस्थों को निधि (खजाना) बताया है या बताने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त प्राता है / ) विवेचन-धातु तीन प्रकार के होते हैं---१. पाषाणधातु, 2. रसधातु, 3. मिट्टीधातु / 1. किसी पाषाण (पत्थर) विशेष के साथ लोहा आदि का युक्ति पूर्वक घर्षण करने से सुवर्ण आदि बनता है, वह 'पाषाणधातु' कहा जाता है / 2. जिस धातु का पानी ताम्र आदि धातु पर सिंचन करने पर सुवर्ण आदि बनता है, वह 'रस धातु कहा जाता है। 3. जिस मिट्टी को किसी अन्य पदार्थों के संयोग से या लोहे आदि पर धर्षण करने से सुवर्ण आदि बनता है वह 'मिट्टी धातु' कहा जाता है। भिक्षु को किसी के द्वारा या स्वतः किसी धातु की या निधि की जानकारी हो जाय तो गृहस्थ को बताना नहीं कल्पता है / बताने पर सूत्रोक्त प्रायश्चित्त पाता है। गृहस्थ को धातु, निधि बताने पर वह अनेक प्रारम्भमय प्रवृत्तियों में अथवा अन्य पाप कार्यों में वृद्धि कर सकता है / एक को बताने पर अनेकों को मालम पड़ने पर परम्परा बढ़ती है। किसी को बताये, किसी को नहीं बताये तो राग-द्वेष की वृद्धि होती है / अंतराय के उदय से किसी को सफलता न मिले तो अविश्वास होता है / अतः भिक्षु को इन दोषस्थानों से दूर ही रहना चाहिए / निधि के निकालने में पृथ्वीकाय, त्रसकाय आदि के विराधना की सम्भावना रहती है। यदि किसी निधि का कोई स्वामी हो तो उससे कलह होने की या दण्डित होने की सम्भावना भी रहती है / पात्र आदि में अपना प्रतिबिम्ब देखने का प्रायश्चित्त 31. जे भिक्खू मत्तए अप्पाणं देहइ, देहतं वा साइज्जइ / 32. जे भिक्खू अदाए अप्पाणं देहइ, बेहतं वा साइज्जइ / 33. जे भिक्खू असीए अप्पाणं देहइ, देहतं वा साइज्जइ / 34. जे भिक्खू मणिए अप्पाणं देहइ, देहतं वा साइज्जइ / 35. जे भिक्खू कुड-पाणए अप्पाणं देहइ, देहतं वा साइज्जइ / 36. जे भिक्खू तेल्ले अप्पाणं देहइ, देहतं वा साइज्जइ / 37. जे भिक्खू महुए अप्पाणं देहइ, व्हतं वा साइज्जइ / 38. जे भिक्खू सप्पिए अप्पाणं देहइ, देहंत वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org