________________ बारहवां उद्देशक प्रस प्राणियों के बंधन-विमोचन का प्रायश्चित्त १-जे भिक्खू कोलुण-वडियाए अण्मयरं तसपाणजायं, 1. तण-पासएक वा, 2. मुज-पासएण वा, 3. कट्ट-पासएण वा, 4. चम्म-पासएण वा, 5. बेत्त-पासएण वा, 6. रज्जू-पासएण वा, 7. सुत्त-पासएण वा बंधइ, बंधतं वा साइज्जइ / २-जे भिक्खू कोलुण-वडियाए अण्णयरं तसपाणजायं तण-पासएण वा जाव सुत्त-पासएण वा बढेलयं मुचइ मुचतं वा साइज्जइ / १-जो भिक्षु करुणा भाव से किसी त्रस प्राणी को 1. तृण के पाश से, 2. भुज के पाश से, 3. काष्ठ के पाश से, 4. चर्म के पाश से, 5. वेत्र के पाश से, 6. रज्जू के पाश से, 7. सूत्र के पाश से बांधता है या बांधने वाले का अनुमोदन करता है। २-जो भिक्षु करुणा भाव से किसी त्रस प्राणी को तृण-पाश से यावत् सूत्र-पाश से बंधे हुए को खोलता है या खोलने वाले का अनुमोदन करता है। [उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है। ] विवेचन-कोलुणं कारुण्यं, अणुकम्पा। -चूर्णि चूर्णिकार ने कोलुण शब्द का अर्थ करुणा या अनुकम्पा किया है। करुणा दो प्रकार को होती है, यथा-- 1. शय्यातर आदि [ गृहस्वामी ] के प्रति करुणा भाव / 2. किसी त्रस प्राणी के प्रति करुणा भाव / 1. भिक्षु यदि पशु आदि के बाड़े के निकट ही ठहरा हो और गृहस्वामी किसी कार्य के लिये कहीं चला जाये, उस समय कोई पशु बाड़े में से निकलकर बाहर जा रहा हो तो उसे बांधना .अथवा गृहस्वामो बाहर जाते समय यह कहे कि "अमुक समय पर इन पशुओं को खोल देना या बाहर से अमुक समय पशु आयेंगे तब उन्हें बांध देना" तो उन पशुओं को बांधना या खोलना, यह शय्यातर पर किया गया करुणा भाव है। 2. बंधा हुआ पशु बंधन से मुक्त होने के लिये छटपटा रहा हो, उसे बंधन से मुक्त कर देना अथवा सुरक्षा के लिये खुले पशु को नियत स्थान पर बांध देना यह पशु के प्रति करुणा भाव है। भिक्षु मुधाजीवी होता है तथा निःस्पृह भाव से संयम पालन करता है अतः करुणा भाव से गृहस्वामी का निजी कार्य करना, यह उसकी श्रमण समाचारी से विपरीत है। पशु को बांधने पर वह बंधन से पीड़ित हो या आकुल-व्याकुल हो तो तज्जन्य हिसा दोष लगता है / खोलने पर कुछ हानि कर दे, निकलकर कहीं गुम जाये या जंगल में चला जाये और वहां कोई दूसरा पशु उसे खा जाये या मार डाले तो भी दोष लगता है / For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org