________________ 280] [निशीथसूत्र 37. जो भिक्षु रात्रि में गोबर ग्रहण कर रात्रि में शरीर के व्रण पर आलेपन या विलेपन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / 38. जो भिक्षु दिन में विलेपन के पदार्थ ग्रहण कर दूसरे दिन शरीर के व्रण पर अालेपन या विलेपन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 39. जो भिक्षु दिन में विलेपन के पदार्थ ग्रहण कर रात्रि में शरीर के व्रण पर आलेपन या विलेपन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 40. जो भिक्षु रात्रि में विलेपन के पदार्थ ग्रहण कर दिन में शरीर के व्रण पर पालेपन या विलेपन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / 41. जो भिक्षु रात्रि में विलेपन के पदार्थ ग्रहण कर रात्रि में शरीर के व्रण पर आलेपन या विलेपन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन—गोबर अथवा विलेपनयोग्य अन्य पदार्थ औषध रूप में व्रण आदि पर विलेपन करना आवश्यक हो तो स्थविरकल्पी भिक्षु इन्हें दिन में ग्रहण करके उसी दिन, दिन में उपयोग में ले सकता है। सूत्रोक्त चौभंगीद्वय में कहे अनुसार रात्रि में या दूसरे दिन उपयोग में लेने पर, रात्रि में रखने का और उपयोग में लेने का लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है। ग्यारहवें उद्देशक में आहार करने की अपेक्षा से ऐसी ही चौभंगी के द्वारा गुरुचौमासी प्रायश्चित्त कहा है, रात्रि में प्रक्षेपाहार को अपेक्षा विलेपन का दोष अल्प होने से इसका यहाँ लघुचौमासी प्रायश्चित्त कहा गया है। चौभंगी और सन्निधि-संग्रह संबंधी विवेचन ग्यारहवें उद्देशक के अनुसार जान लेना चाहिये / भाष्य में कहा गया है कि तत्काल का (ताजा) भैस का गोबर विषहरण के लिये अति उत्तम होता है, उसके न मिलने पर गाय का गोबर भी उपयोग में लेना लाभदायक है। धूप लगा हुआ या ज्यादा समय का या कुछ-कुछ सूखा गोबर अधिक लाभप्रद नहीं होता है। अतः आवश्यक परिस्थिति में रात्रि में भी उपयोग करना पड़ जाय तो सूत्रोक्त लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। विलेपन के अन्य पदार्थ प्रयोग विशेष से तैयार किये जाते हैं। ये लम्बे समय तक भी उपयोग में लेने योग्य होते हैं / फिर भी तीव्र वेदना के कारण प्रस्तुत सूत्रों में कहे गये समय में उपयोग करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है / ये विलेपन के पदार्थ दिन में लगा देने के बाद रात्रि में भी शरीर पर लगे रह सकते हैं। इससे कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org