________________ ग्यारहवां उद्देशक] [245 सूत्र 73 सूत्र 76 सत्र 77 सूत्र 7 धर्म की निन्दा करना सूत्र 8 अधर्म की प्रशंसा करना सूत्र 9-62 गहस्थ के शरीर का परिकर्म करना सूत्र 63-64 स्वयं को या अन्य को डराना सूत्र 65-66 स्वयं को या अन्य को विस्मित करना सूत्र 67-68 स्वयं को या अन्य को विपरीत रूप में दिखाना या कहना सूत्र 69 जो सामने हो उसके धर्मप्रमुख की, सिद्धान्तों की या प्राचार की प्रशंसा करना अथवा उस व्यक्ति की झूठी प्रशंसा करना सूत्र 70 दो विरोधी राज्यों के बीच पुनः पुनः गमनागमन करना सूत्र 71 दिवसभोजन की निन्दा करना सूत्र 72 रात्रिभोजन की प्रशंशा करना दिन में लाया आहार दूसरे दिन खाना सूत्र 74 दिन में लाया आहार रात्रि में खाना सूत्र 75 रात्रि में लाया आहार दिन में खाना रात्रि में लाया आहार रात्रि में खाना आगाढ परिस्थिति के बिना रात्रि में अशनादि रखना सूत्र 78 आगाढ परिस्थिति से रखे पाहार को खाना सूत्र 79 संखडी के आहार को ग्रहण करने की अभिलाषा से अन्यत्र रात्रिनिवास करना सूत्र 80 नैवेद्य-पिंड ग्रहण करके खाना सूत्र 81-82 स्वच्छंदाचारी की प्रशंसा करना, उसे वन्दन करना सूत्र 83-84 अयोग्य को दीक्षा देना या बड़ी दीक्षा देना अयोग्य से सेवाकार्य कराना सूत्र 86-89 अचेल या सचेल साधु का सचेल या अचेल साध्वियों के साथ रहना। सूत्र 90 पर्युषित (रात रखे) चूर्ण, नमक आदि खाना सूत्र 91 अात्मघात करने वालों की प्रशंसा करना इत्यादि दोषस्थानों का सेवन करने पर गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है / इस उद्देशक के 20 सूत्रों के विषय का कथन निम्न आगमों में है, यथासूत्र 1-4 लोहे आदि के पात्र रखने एवं उनके बंधन करने का निषेध / -आचा. श्रु. 2, अ. 6, उ. 1 सूत्र 5 अर्द्धयोजन के आगे पात्र के लिये जाने का निषेध / -प्राचा. श्रु. 2, अ. 6, उ. 1 सूत्र 1 तीर्थकर व उनके धर्म का अवर्णवाद करने वाला महामोहनीय कर्म का बंध करता है। ___-दशा. द. 9, गा. 23-24 'परपासंडपसंसा' यह सम्यक्त्व का अतिचार है। -~-उपा. अ.१ सूत्र 85 सूत्र 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org