________________ 260] [निशीथसूत्र गुरुमासिक प्रायश्चित्त तथा साधु के द्वारा कहीं भी पृथ्वी आदि की विराधना हो जाय तो प्रस्तुत सूत्र से लधुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। ___ साधु के द्वारा अनंतकाय अर्थात् साधारण वनस्पतिकाय की विराधना हो जाय तो उसका भाष्य गा. 117 में गुरुचौमासी प्रायश्चित्त कहा है / प्रायश्चित्त के अन्य भी अनेक विकल्प जानने के लिये भाष्य गा. 117 तथा गाथा. 145 से 257 तक की चूणि का अध्ययन करना चाहिये। भाष्य. गा. 258 से 289 तक त्रसकाय के संबंध में भी इसी प्रकार से वर्णन किया है। प्रस्तुत सूत्र में तो पांच स्थावर की विराधना का ही प्रायश्चित्त कहा है, तथापि यहां उपयुक्त होने से उसकाय संबंधी वर्णन भी दिया जाता है। सकाय को विराधना के स्थान १.मार्ग में मार्ग में या ग्रामादि में लाल कोड़ियां, काली कीड़ियां, मकोड़े, दीमक तथा वर्षा होने से उत्पन्न हुए अनेक प्रकार के सीप शंख गिजाइयां अलसिया एवं जलोका मच्छर आदि तथा अत्यन्त छोटे मेंढक आदि जीव भ्रमण करते हैं / भिक्षु के द्वारा गमनागमन में असावधानी होने पर इन जीवों की विराधना हो सकती है। अन्य मार्ग के न होने पर ऐसे जीवयुक्त मार्ग से जाते समय सावधानी पूर्वक देखकर या प्रमार्जन करके चलने से भिक्षु जीवविराधना से बच सकता है / ग्रामादि के अंदर या बाहर जहां मनुष्य के मल-मूत्र प्रादि अशुचि पदार्थ हों, वहां असावधानी से चलने या खड़े रहने से संमूर्छिम मनुष्यादि की विराधना हो सकती है। 2. भिक्षाचरी में-१. छाछ, दही, मक्खन, इक्षु निर्मित काकब और घृत आदि के विकृत हो जाने पर उनमें लटें आदि जीव उत्पन्न हो जाते हैं। कहीं अचित्त शीतल जल में भी त्रस जीव हो सकते हैं / असावधानी से कभी भिक्षाचरी में इनके ग्रहण कर लिये जाने पर उन जीवों की विराधना होती है। 2. अनेक खाद्य पदार्थों में कीड़ियां आदि आ जाती हैं और विवेक न रखने पर उन जीवों की विराधना हो सकती है / 3. भिक्षा लेने के स्थान पर कीडियां आदि हों तो दाता के द्वारा उनकी विराधना हो सकती है। 4. आहार-पानी के चलितरस हो जाने पर उसमें "रसज' जीव उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे उन पदार्थों का स्वाद और गंध बदलकर खराब हो जाता है / ऐसे चलितरस खाद्य-पदार्थों को विभाजित करने पर और पेय पदार्थों को हाथ से स्पर्श करके देखने पर लार जैसे जंतु दिखाई देते हैं / विवेक न रहने पर उन रसज जीवों की विराधना होती है / अतः भिक्षु को गवेषणाविधि में कुशल होने के साथ-साथ पदार्थों के परीक्षण करने में भी कुशल होना चाहिए। ___ असावधानी से उपर्युक्त जीवयुक्त पदार्थ भिक्षा में आ जावे तो शोधन करने योग्य का शोधन किया जाता है और परठने योग्य का परिष्ठापन कर दिया जाता है। इसकी विधि ऊपर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org