________________ [263 बारहवां उद्देशक] पूर्वकर्म-पश्चात्कर्म आदि दोष लगते हैं अतः भिक्षु को गृहस्थ के बर्तनों में खाना-पीना नहीं कल्पता है / इन्हीं कारणों से निर्ग्रन्थ मुनि गृहस्थ के बर्तन में आहारादि नहीं करते / दशवै. अ. 3 गा. 3 में गृहस्थ के बर्तन में खाने की प्रवृत्ति को अनाचार कहा है / सूय. श्रु. 1 अ. 2. उ. 2 गा. 20 में गृहस्थ के बर्तनों में नहीं खाने वाले भिक्षु को सामायिक चारित्रवान् कहा है। सूय. श्रु. 1 अ. 9 गा. 20 में कहा गया है कि-भिक्षु गृहस्थ के बर्तनों में प्राहार-पानी कदापि नहीं करे। गृहस्थ के पात्र में खाने से होने वाले दोष---- 1. गृहस्थ के घर में खाना, 2. गृहस्थ के द्वारा स्थान पर लाया हुआ खाना, 3. गृहस्थ द्वारा बर्तनों को पहले या पीछे धोना, 4. नया बर्तन खरीदना, 5. आहार-पानी की अलग-अलग व्यवस्था करना। इत्यादि अनेक दोषों की परम्परा बढ़ती है / अतः भिक्षु को आगमानुसार गृहीत लकड़ी, मिट्टी या तुम्बे के पात्र में ही आहार करना चाहिए / गृहस्थ के थाली, कटोरी, गिलास, लोटे आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए / उपर्युक्त आगम पाठों में गृहस्थ के पात्र में आहार-पानी के उपयोग करने का निषेध है और उन सूत्रों की व्याख्याओं में प्राहार-पानी सम्बन्धी दोषों का ही कथन है / अत: वस्त्रप्रक्षालन के लिए औपग्रहिक उपकरण के रूप में गृहस्थ के पात्र का यदि उपयोग किया जाए तो सूत्रोक्त प्रायश्चित्त नहीं पाता है / क्योंकि उनका उपयोग करने पर पश्चात्कर्मादि दोष नहीं लगते हैं। गृहस्थ के वस्त्र का उपयोग करने पर प्रायश्चित्त 11. जे भिक्खू गिहिवत्यं परिहेइ, परिहेंतं वा साइज्जह / 11. जो भिक्षु गृहस्थ के वस्त्र को पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन--भिक्षु वस्त्र की आवश्यकता होने पर गृहस्थ से वस्त्र की याचना करके ही उपयोग में लेता है / किन्तु पडिहारी वस्त्र ग्रहण करके उसे उपयोग में लेकर गृहस्थ को लौटाना नहीं कल्पता है / इसी का प्रस्तुत सूत्र में प्रायश्चित्त कहा गया है / / पुनः लौटाने योग्य वस्त्र ही गहस्थ का वस्त्र कहा जाता है। उसका उपयोग करने पर पूर्वकर्म, पश्चात्कर्म आदि अनेक दोष लगते हैं। उन्हें गृहस्थ-पात्र के विवेचन में कहे गये दोषों के समान समझ लेना चाहिए। सूय. श्रु. 1 अ. 9 गा. 20 में गृहस्थ के वस्त्र को उपयोग में लेने का निषेध किया गया है। अत: भिक्षु को मुनि-प्राचार के अनुसार गृहस्थ द्वारा पूर्ण रूप से दिया गया वस्त्र ही उपयोग में लेना चाहिए / किन्तु लौटाने योग्य वस्त्र लेकर उपयोग में नहीं लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org