________________ बारहा उद्देशक] [267 चौथे उद्देशक में सामान्य हाथ बर्तन आदि का कथन है किन्तु यहाँ सचित्त जल से कार्य करते हुए हाथ का तथा सचित्त जल लेने-पीने के बर्तन का कथन है। यह इन दोनों उद्देशक में सूत्रों के विषयों में अन्तर है। प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'सीअोदग परिभोगेण' शब्द की व्याख्या इस प्रकार हैजेण भत्तएण सचित्तोवगं परिभुज्जति, तेण भिक्खग्गहणं पडिसिद्ध / -चणि इसका भावार्थ यह है कि सचित्त जल के कार्य में उपयुक्त हाथ बर्तन आदि अथवा सशित्त जल लेने-देने-निकालने के बर्तन आदि से भिक्षा ग्रहण करना निषिद्ध है। रूप-ग्रासक्ति के प्रायश्चित्त 16. जे भिक्खू–१. वप्पाणि वा, 2. फलिहाणि वा, 3. पागाराणि वा, 4. तोरणाणि वा, 5. अग्गलाणि वा, 6. अग्गल-पासगाणि वा, 7. गड्डाओ वा, 8. दरीओ वा, 9. कूडागाराणि वा, 10. णूम-गिहाणि वा, 11. रुक्ख-गिहाणि वा, 12. पव्वय-गिहाणि वा, 13. रुक्खं वा चेइय वा कडं, 14. थूभं वा चेइयं कडं, 15. आएसणाणि वा, 16. आयतणाणि वा, 17. देवकुलाणि वा, 18. सहाओ वा, 19. पवाओ वा, 20. पणिय-गिहाणि वा, 21. पणिय-सालाओ वा, 22. जाण-गिहाणि वा, 23. जाण-सालाओ वा, 24. सुहा-कम्मंताणि वा, 25. दभ-कम्मंताणि वा, 26. बद्ध-कम्मंताणि वा, 27. वक्क-कम्मंताणि वा, 28. वण-कम्मंताणि वा, 29. इंगाल-कम्मंताणि वा 30. कट्ठ-कम्मंताणि वा, 31. सुसाण-कम्मंताणि वा, 32. संति-कम्मंताणि वा, 33. गिरि-कम्मंताणि वा, 34. कंबरकम्मंताणि वा, 35. सेलोवट्ठाण-कम्मंताणि वा, 36. भवणगिहाणि वा चक्खुदंसणवडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ / 17. जे भिक्खू-१. कच्छाणि वा, 2. दवियाणि वा, 3. णूमाणि वा, 4. वलयाणि वा, 5. गणाणि वा, 6. गहण-विदुग्गाणि बा, 7. वणाणि वा, 8. वण-विदुग्गाणि वा, 9. पव्वयाणि वा, 10. पव्वय-विदुग्गाणि वा, 11. अगडाणि वा, 12. तडागाणि वा, 13. वहाणि वा, 14. गईओ वा, 15. वावीओ वा, 16. पुक्खरणीओ वा, 17. दीहियाओ वा, 18. गुजालियाओ वा, 19. सराणि वा, 20. सर-पंतियाणि वा, 21. सर-सरपंतियाणि वा चक्खुवंसणवडियाए अभिसंधारेई, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ। 18. जे भिक्खू गामाणि वा जाव रायहाणोणि वा चक्खुदंसणवडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ / 19. जे भिक्खू गाम-महाणि वा जाव रायहाणि-महाणि वा चक्षुदसणवडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ / 20. जे भिक्खू गाम-वहाणि वा जाव रायहाणी-वहाणि वा चक्खुदंसणवडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ। ___ 21. जे भिक्खू गाम-पहाणि वा जाव रायहाणी-पहाणि वा चक्खुदंसणवडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org