________________ 230] [निशीयसूत्र रात्रिभोजन से प्राणातिपात ग्रादि मूलगुणों की विराधना होती है तथा छठा रात्रिभोजनविरमण व्रत भी मूलगुण है, उसका भंग होता है / कुथुए आदि सूक्ष्म प्राणी तथा फलण आदि का शोधन होना अशक्य होता है। रात्रि में आहार की गवेषणा करने में एषणासमिति का पालन भी नहीं होता है / चूर्णिकार ने कहा है कि च येऽपि प्रत्यक्षज्ञानिनो ते विशुद्धं भक्तानपानं पश्यंति तथापि रात्रौ न भुजते, मूलगुणभंगत्वात् / " तीर्थकरगणधराचार्यः अनाचीर्णत्वात्, जम्हा छट्ठो मूलगुणो विराहिज्जति तम्हा ग रातो भोत्तव्वं / अर्थ---जो प्रत्यक्ष ज्ञानी होते हैं वे आहारादि को विशुद्ध जानते हुए भी रात्रि में नहीं खाते, क्योंकि मूलगुण का भंग होता है / तीर्थंकर, गणधर और प्राचार्यों से अनासेवित है, इससे छठे मूलगुण की विराधना होती है, अतः रात्रिभोजन नहीं करना चाहिये। प्रागमों में रात्रिभोजन निषेध-सूचक स्थल इस प्रकार हैं१. दशवैकालिक सूत्र अ. 3 में रात्रिभोजन निग्रंथ के लिये अनाचार कहा गया है। 2. दशवकालिक अ.६ में रात्रिभोजन करने से निग्रंथ अवस्था से भ्रष्ट होना कहा है तथा दोषों का कथन भी किया है। 3. दशवै. अ. 4 में पांच महाव्रत के साथ रात्रिभोजनविरमण को छट्ठा व्रत कहा है। 4. दशवै. अ. 8 में सूर्यास्त से सूर्योदय तक आहार की मन से भी चाहना करने का निषेध है। 5. उत्तरा. अ. 19 गा. 31 में संयम को दुष्करता के वर्णन में चारों प्रकार के आहार का रात्रि में वर्जन करना भी सुदुष्कर कहा है। 6. बृहत्कल्प उ. 1 में रात्रि या विकाल (संध्या) के समय चारों प्रकार के ग्राहार ग्रहण करने का निषेध है। . 7. बृहत्कल्प उ. 5 में आहार करते समय ज्ञात हो जाये कि-सूर्योदय नहीं हुआ है या सूर्यास्त हो गया है तो मुह में रखा हुअा आहार भी निकालकर परठने का विधान किया है और खाने का प्रायश्चित्त कहा है तथा रात्रि में आहार-पानी युक्त 'उद्गाल' या जाए तो उसे निगलने का भी प्रायश्चित्त कहा गया है और उसे भी परठने का विधान है। 8. दशा. द. 2 तथा समवायांग स. 21 में रात्रिभोजन करना 'शबल दोष' कहा है / 9. बृहत्कल्प उ. 4 में रात्रिभोजन का अनुद्घातिक (गुरु) प्रायश्चित्त कहा है। 10. ठाणांग अ. 3 तथा अ. 5 में रात्रिभोजन का अनुद्घातिक प्रायश्चित्त कहा है। 11. सूयगडांगसूत्र श्रु. 1, अ. 2, उ. 3 में रात्रिभोजन त्याग सहित पांच महाव्रत परम रत्न कहे गये हैं, जिन्हें साधु धारण करते हैं। इस प्रकार महावत के तुल्य रात्रिभोजनविरमण का महत्त्व कहा गया है। अन्यत्र भी रात्रिभोजन के लिये निम्नांकित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org