________________ ग्यारहवां उद्देशक] [237 किसी का खरीदा हुआ या अन्य किसी कारण से दासत्व को प्राप्त / 12. दुष्ट-कषाय दुष्ट (अति क्रोधी), विषयदुष्ट (विषयासक्त)। 13. मूर्ख---द्रव्यमूढ आदि अनेक प्रकार के मूर्ख-भ्रमित बुद्धि वाले / 14. कर्जदार-अन्य की सम्पत्ति उधार लेकर न देने वाला। 15. जुगित (हीन) म से, शिल्प से हीन और शरीर से हीनांग (जिसके नाक, कान, पैर, हाथ प्रादि कटे हए हों) / 16. बद्ध-कर्म, शिल्प, विद्या, मंत्र आदि सीखने या सिखाने के निमित्त किसी के साथ प्रतिज्ञाबद्ध हो। 17. भृतक-दिवसभृतक, यात्राभृतक आदि / 18. अपहृत-माता-पिता आदि की प्राज्ञा बिना अदत्त लाया हुआ बालक आदि / 19. गर्भवती-स्त्री। 20. बालवत्सा-दुधमुहे बच्चे वाली स्त्री। भाष्य में इनके अनेक भेद प्रभेद किए हैं तथा इन्हें दीक्षा देने से होने वाले दोषों और उनके प्रायश्चित्तों के अनेक विकल्प कहे हैं। दीक्षा के अयोग्य इन 20 प्रकार के व्यक्तियों का वर्णन निशीथभाष्य तथा अन्य व्याख्याग्रंथों में मिलता है / आगम में इस विषयक कथन बृहत्कल्पसूत्र उद्देशक चार में है / वहाँ तीन को दीक्षा देना आदि अकल्पनीय कहा है, यथा-१. पंडक, 2. क्लीब 3. वातिक / / बहत्कल्पभाष्य में “वाइए" पाठ से "वातिक" की व्याख्या की गई है। किन्तु निशोथभाष्य में अयोग्यों के वर्णन में “वाहिए" शब्द कह कर व्याधिग्रस्त अर्थ किया है तथा नपुंसक के प्रभेदों में “वातिक" कहा है। वातिक–वायुजन्य दोष से जो विकार को प्राप्त होता है एवं अनाचार-सेवन करने पर ही उपशांत होता है। क्लीब-दृष्टि, शब्द, स्पर्श (आलिंगन) या निमन्त्रण से विकार को प्राप्त होकर जिसके स्वत: वीर्य निकल जाता है। बृहत्कल्पसूत्र के मूल पाठ में "पंडक" (नपुसक) से इन दोनों को अलग कहने का कारण यह है कि ये लिंग व वेद की अपेक्षा से पुरुष हैं किन्तु कालान्तर से नपुंसक भाव को प्राप्त हो जाते हैं / अतः पुरुष होते हुए भी इन्हें दीक्षा देने का निषेध किया गया है। आगमविहारी अतिशयज्ञानी इन भाष्यवणित सभी को यथावसर दीक्षा दे सकते हैं / "बालवय" वाले को कारणवश गीतार्थ दीक्षा दे सकते हैं, ऐसा ठाणांग सूत्र अ० 5, सूत्र 108 से फलित होता है। भाष्य-गाथा 3738 में बीस प्रकार के अयोग्यों में से कुछ को यथावसर दीक्षा दी भी जा सकती है, ऐसा बताया है किन्तु गीतार्थ को यह अधिकार अन्य गीतार्थ की सलाह से ही होता है / अन्यथा उसे भी प्रायश्चित्त आता है / दीक्षा के योग्य व्यक्ति 1. पार्यक्षेत्रोत्पन्न 2. जातिकुलसम्पन्न 3. लघुकर्मो 4. निर्मलबुद्धि 5. संसार-समुद्र में मनुष्य भव की दुर्लभता, जन्म-मरण के दुःख, लक्ष्मी को चंचलता, विषयों के दुःख, इष्ट संयोगों का वियोग, आयु की क्षणभंगुरता, मरण पश्चात् परभव का अति रौद्र विपाक और संसार की असारता आदि भावों को जानने वाला 6. संसार से विरक्त 7. अल्पकषायी 8. अल्पहास्यादि (कुतहलवृत्ति से रहित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org