________________ सूत्र 39 62] [निशीयसूत्र इस उद्देशक के 38 सूत्रों के विषय का कथन निम्न आगमों में है, यथासूत्र 1-7 काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन रखने के विधि-निषेध -बृहत्कल्प उद्दे० 5 / सूत्र 9 सुगंध सूघने का निषेध --- प्रा० श्रु 2, अ० 1, उ० 8 तथा आचा० श्रु० 2 अ० 15 / सूत्र 13 चिलमिली प्ररूपण ---बृहत्कल्प० उद्दे० 5 / सूत्र 18-20 तीन महाव्रत वर्णन ---दश० अ० 4 तथा प्रा० श्रु० 2 अ० 15 / सूत्र 21 स्नाननिषेध, प्रक्षालननिषेध-दश० अ० 4, गा० 26 तथा अ० 6,' सूत्र 22-24 कृत्स्न चर्म निषेध, कृत्स्न वस्त्र तथा अभिन्न वस्त्र निषेध - बृह० उद्दे० 3 / सूत्र 32-36 नित्यदान दिये जाने वाले कुलों में भिक्षार्थ जाने का निषेध -प्रा० श्रु० 2 अ० 1, उ०१। सूत्र 37 नित्यवास निषेध --पा० श्रु 2, अ० 2, उ०२। दाता की या अपनी प्रशंसा का निषेध -पिंडनियुक्ति। भिक्षाकाल के पहले भिक्षार्थ जाने का निषेध –आ० श्रु० 2, अ० 1, उद्दे० 9 / सूत्र 40-42 भिक्षाचरों के साथ भिक्षा आदि जाने का निषेध -पा० श्रु२, अ० 1, उद्दे० 1 / सूत्र 43-45 मनोज्ञ पाहार पानी खाना, पीना, अमनोज्ञ परठना -प्रा० श्रु० 2, अ० 1, उ० 10 / सूत्र 46-48 शय्यातर पिण्ड लेने का निषेध-दश० अ० 3 तथा -आ. श्रु 2 अ० 2 उद्दे० 3 / सूत्र 53 शय्या-संस्तारक अन्यत्र ले जाने के लिए दूसरी बार स्वामो से आज्ञा लेना --व्यव० उद्दे० 8 / सूत्र 54-56 शय्या-संस्तारक स्वामी को संभलाकर विहार करने का विधान -बृहत्कल्प उद्दे 0 3 / सूत्र 57 उपधि-प्रतिलेखन-उत्त० अ० 26 तथा प्राव० अ०४ / इस उद्देशक के निम्न 19 सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथासूत्र 8 काष्ठदण्डयुक्त पादपोंछन को खोलना / सूत्र 10-12 पदमार्ग आदि स्वयं बनाना। सूत्र 14-17 सूई आदि स्वयं सुधारना / सूत्र 25-26 पात्र, दण्ड आदि स्वयं सुधारना। सूत्र 27-31 स्वजनादि गवेषित पात्र ग्रहण करना / सूत्र 49 शय्यातर की प्रेरणा से प्राप्त आहार लेना। सूत्र 50-51 निर्धारित अवधि के बाद भी पुनः प्राज्ञा लिए बिना शय्या-संस्तारक रखना। सूत्र 52 वर्षा से भींगते हुए शय्या-संस्तारक को छाया में न रखना। // दूसरा उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org