________________ सातवां उद्देशक माला-निर्माणादि के प्रायश्चित्त 1. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए 1. तणमालियं वा, 2. मुजमालियं वा, 3, वेतमालियं वा, 4. कट्ठमालियं वा, 5, मयणमालियं वा, 6. भिडमालियं बा, 7. पिच्छमालियं वा, 8. हड्डमालियं वा, 9. दंतमालियं वा, 10. संखमालियं वा, 11. सिंगमालियं वा, 12. पत्तमालियं वा, 13. पुप्फमालियं वा, 14. फलमालियं वा, 15, बीयमालियं वा, 16. हरियमालियं वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। 2. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए तणमालियं वा 'जाव' हरियमालियं वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 3. जे भिक्खू माउन्गामस्स मेहुणवडियाए तणमालियं वा 'जाव' हरियमालियं वा पिणद्वेइ, पिणद्धेतं वा साइज्जइ। 1. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से 1. तृण की माला, 2. मूज की माला, 3. वेंत की माला, 4. काष्ठ की माला, 5. मेण (मोम) की माला 6. भींड की माला 7. मोरपिच्छी की माला, 8. हड़ी को माल माला, 10. संख की माला, 11. सींग की माला, 12. पत्रों की माला, 13. पुष्यों की माला, 14. फलों की माला, 15. बीजों की माला या 16. हरित (वनस्पति) की माला बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 2. जो भिक्ष स्त्री के साथ मैथन सेवन के संकल्प से तृण की माला यावत् हरित की माला धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है / 3. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से तृण की माला यावत् हरित की माला पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन–सूत्रोक्त मालाएं विभूषा का एक अंग हैं / मैथुन का संकल्प सिद्ध करने के लिये कभी-कभी विभूषित होना भी प्रावश्यक होता है। शंख की माला के स्थान पर चर्णिकार ने कौडो की माला का उल्लेख किया है / सम्भवतः उनके सामने 'शंख' के स्थान पर 'कौडी' का पाठ रहा होगा। वीज व हरित सम्बन्धी दो मालाओं का पाठ चूर्णिकार के सामने नहीं रहा होगा / 'फलमाला' तक शब्दों की व्याख्या की गई है। इस सूत्र के मूल पाठ में तथा शब्दों के क्रम व संख्या में भिन्नता मिलती है / चूणि के अनुसार क्रम को सुधारा गया है / कुल शब्द 16 रखे हैं, चूणि में 13 शब्दों की ही व्याख्या है / शंख, फल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org