________________ 166] [निशीथसूत्र वा, परियावसहेसु वा, णिसोयावेत्ता वा, तुयट्टावेत्ता वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अणुग्घासेज्ज वा, अणुपाएज्ज वा, अणुग्घासंतं वा, अणुपाएंतं वा साइज्जइ / 78. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के घर में या परिव्राजक के स्थान में बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाने या सुलाने वाले का अनुमोदन करता है। 79. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को धर्मशाला में, बगीचे में, गृहस्थ के घर में या परिव्राजक के स्थान में बिठाकर या सुलाकर अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य खिलाता है,या पिलाता है अथवा खिलाने-पिलाने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) __विवेचन-'अणुग्धासेज्ज' अनु-पश्चाभावे / अप्पणा ग्रसितु पच्छा तोए ग्रासं देति, एवं करोडगादिसु अप्पणा पाउं पच्छा तं पाएति। --चूणि / पहले खुद खाता है और फिर स्त्री को खिलाता है अर्थात् ग्रास उसके मुंह में देता है / कटोरी आदि से स्वयं पेय पीकर फिर उसे पिलाता है। चिकित्साकरण-प्रायश्चित्त 80. जे भिक्खू माउम्गामस्स मेहुणवडियाए अण्णयरं तेइच्छं आउट्टइ, आउट्टतं वा साइज्जइ / 80. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से किसो प्रकार की चिकित्सा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन चिकित्सा 4 प्रकार की होती है-१. वात, 2. पित्त, 3. कफ एवं 4. सान्निपातिक रोगों की। इनमें से किसी प्रकार की चिकित्सा मैथुन सेवन के संकल्प से स्वयं की करता है अथवा स्त्री की करता है तो उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। यहाँ स्त्री की चिकित्सा की प्रधानता समझनी चाहिए। पुद्गलप्रक्षेपणादि के प्रायश्चित्त 81. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अमणुन्नाई पोग्गलाई नीहरइ, नोहरंतं वा साइज्ज। 82. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए मणुण्णाइं पोग्गलाई उवकिरइ, उवकिरतं वा साइज्जई। 81. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से अमनोज्ञ पुद्गलों को निकालता है (दूर करता है) या निकालने वाले का अनुमोदन करता है / 82. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से मनोज्ञ पुद्गलों का प्रक्षेप करता है या प्रक्षेप करने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-अमनोज्ञ पुद्गल को दूर करने का तात्पर्य है शरीर एवं उपकरणों को या मकानों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org