________________ 188] [निशीथतन 'उसिणोदग तत्तभोइणो, धम्मठियस्स मुणिस्स होमओ। संसग्गि असाहु राईहिं, असमाहि उ तहागयस्स वि // ' राजा के निवासस्थान के बाहर व आस-पास कई रक्षक राजपुरुष रहते हैं, कई प्रकार की शंकाओं की संभावना रहती है। अतः ऐसे स्थानों को जान लेने के बाद साधु को उस ओर नहीं जाना चाहिये। यात्रा में गये हुए राजा का आहार-ग्रहण करने पर प्रायश्चित्त 13. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तासंपट्ठियाणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / 14. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं बहिया जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेह, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 15. जे भिक्खू खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गह-जत्तासंपट्टियाणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 16. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं गइ-जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / 17. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुबियाणं मुखाभिसित्ताणं गिरि-जत्तासंपट्टियाणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ। 18. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुखाभिसित्ताणं गिरि-जत्तापडिणियत्ताणं असणं वा, पाणं वा, खाइमं बा, साइमं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गाहेंतं वा साइज्जइ / 13. जो भिक्षु युद्ध आदि की यात्रा के लिये जाते हुए शुद्धवंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / 14. जो भिक्षु युद्ध आदि की यात्रा से पुनः लौटते हुए शुद्धवंशज मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 15. जो भिक्षु नदी की यात्रा के लिये जाते हुए शुद्धवंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का प्रशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है / 16. जो भिक्षु नदी की यात्रा से पुनः लौटते हुए शुद्धवंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 17. जो भिक्षु पर्वत की यात्रा के लिये जाते हुए शुद्धवंशीय मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का प्रशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। 18. जो भिक्षु पर्वत की यात्रा से पुनः लौटते हुए शुद्धवंशीय मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा का अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org