________________ 220] [निशीथसूत्र करने का निषेध किया गया है / प्रस्तुत चार सूत्रों में उन्हीं लोहे आदि के पात्रों को ग्रहण करने का प्रायश्चित्त कहा गया है। ___ अाचारांगसूत्र में लोहे से चर्म पर्यन्त कथन करने के साथ अन्य भी इस प्रकार के पात्र ग्रहण करने का निषेध किया है तथा इन्हें बहुमूल्य विशेषण से सूचित किया है। ___लकड़ी, तुम्वा व मिट्टी के पात्र भिक्षु की लघुता के सूचक हैं। भगवतीसूत्र श. 3, उ. 1 में तामलितापस के काष्ठ-पात्र ग्रहण करने का वर्णन है। उववाईसूत्र में तापस-परिव्राजक आदि के वर्णन में उनके लिए काष्ठ आदि तीन प्रकार के ही पात्र रखने का वर्णन है एवं अनेक प्रकार के पात्र रखने का निषेध है। काष्ठादि तीनों प्रकार के पात्र अल्पमूल्य एवं सामान्य जातीय होने से उनकी चोरी होने का भय नहीं रहता है / काष्ठ व तुम्बे के पात्र में वजन भी कम होता है। लोहे आदि के पात्र भारी तथा बहुमूल्य होते हैं, अतः इनका निषेध व प्रायश्चित्त कहा गया है। वर्तमान में प्लास्टिक के पात्र भी साधु-साध्वी उपयोग में लेते हैं / प्लास्टिक को काष्ठ-रस संयोग से निर्मित माना जाता है। प्लास्टिक के पात्र का वजन व मल्य काष्ठपात्र से भी कम होता अतः लोहे आदि के पात्र में होने वाले दोषों की इसमें सम्भावना नहीं है। किन्तु ये पात्र सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ ग्रहण करने व रखने के योग्य नहीं होते हैं। अत: पागम-निर्दिष्ट काष्ठादि पात्र के समान ये पूर्ण रूप से उपयोगी नहीं हैं / आचारांगसूत्र में निषिद्ध पात्रों के वर्णन में 17 जाति का नामोल्लेख है / जो प्रायः सभी प्रतियों में एक समान है / किन्तु प्रस्तुत प्रायश्चित्तसूत्र में जो उल्लेख है, वह विभिन्न प्रतियों में विभिन्न रूप से उपलब्ध है अर्थात् क्रम और नामों में भी कुछ-कुछ भिन्नता है। निशीथसूत्र को अनेक प्रतियों में कुल मिलाकर (22) बावीस नाम आते हैं, जिनमें (12) बारह नाम सभी प्रतियों में समान हैं और (10) दस नाम किसी में हैं, किसी में नहीं हैं। वे बारह नाम इस प्रकार हैं--- 1. अय-पायाणि, 2. तंब-पायाणि, 3. तउय-पायाणि, 4. सुवण्ण-पायाणि, 5. कंस-पायाणि, 6. मणि-पायाणि, 7. दंत-पायाणि, 8. सिंग-पायाणि, 9. संख-पायाणि, 10. चम्म-पायाणि, 11. चेलपायाणि, 12. वइर-पायाणि / दस नाम इस प्रकार हैं 1. सीसग-पायाणि, 2. रुप्प-पायाणि, 3. जायरूव-पायाणि, 4. कणग-पायाणि, 5. हिरण्णपायाणि, 6. रीरिय-पायाणि, 7. हारपुड-पायाणि, 8. काय-पायाणि, 9. सेल-पायाणि, 10. अंकपायाणि / निशीथचूणि में चार-पांच नाम निर्दिष्ट हैं और एक दो शब्दों की व्याख्या है। आचारांगटीका में केवल एक शब्द की व्याख्या व नामनिर्देश है / इसलिये इन पाठान्तरों का कोई प्रामाणिक समाधान सम्भव नहीं है / For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International