________________ ग्यारहवाँ उद्देशक निषिद्ध पात्रग्रहण-धारण-प्रायश्चित्त 1. जे भिक्खू 1. अय-पायाणि वा, 2. तंब पायाणि वा, 3. तउय-पायाणि वा, 4. सीसगपायाणि वा, 5. हिरण्ण-पायाणि वा, 6. सुवण्ण-पायाणि वा, 7. रीरिय-पायाणि वा, 8. हारपुडपायाणि वा, 9. मणि-पायाणि वा, 10. काय-पायाणि वा, 11. कंस-पायाणि वा, 12. संख-पायाणि वा, 13. सिंग-पायाणि वा, 14. दंत-पायाणि वा, 15. चेल-पायाणि वा, 16. सेल-पायाणि वा, 17. चम्म-पायाणि वा करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / 2. जे भिक्खू अय-पायाणि वा जाव चम्म-पायाणि वा धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 3. जे भिक्खू अय-बंधणाणि वा जाव चम्म-बंधणाणि वा (पायाणि) करेइ, करेंतं वा साइज्जइ। 4. जे भिक्खू अय-बंधणाणि वा जाव चम्म-बंधणाणि वा (पायाणि) धरेइ, धरतं वा साइज्जइ। 1. जो भिक्षु 1. लोहे के पात्र, 2. तांबे के पात्र, 3. रांगे के पात्र, 4. शीशे के पात्र, 5. चांदी के पात्र, 6. सोने के पात्र, 7. पीतल के पात्र, 8. मुक्ता आदि रत्न जड़ित लोहे आदि के पात्र, 9. मणि के पात्र, 10. कांच के पात्र, 11. कांसे के पात्र, 12. संख के पात्र, 13. सींग के पात्र, 14. दांत के पात्र, 15. वस्त्र के पात्र, 16. पत्थर के पात्र, 17. चर्म के पात्र बनाता है या बनाने वाले का अनुमोदन करता है। 2. जो भिक्षु लोहे के पात्र यावत् चर्म के पात्र रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है। 3. जो भिक्षु पात्र पर लोहे के बंधन लगाता है या लगाने वाले का अनुमोदन करता है / 4. जो भिक्षु लोहे के बंधन यावत् चर्म के बंधन वाले पात्र रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-पाचा. श्रु. 2, अ. 6. उ. 1 में तथा ठाणांगसूत्र अ. 3 में साधु-साध्वी के लिये तीन प्रकार के पात्र ग्रहण करने एवं धारण करने का विधान है, यथा--१. तुम्बे के पात्र, 2. लकड़ी के पात्र, 3. मिट्टी के पात्र / अन्य अनेक आगमों में भी इन्हीं तीन प्रकार के पात्रों का निर्देशपूर्वक वर्णन किया गया है। प्राचा. श्रु. 2, प्र. 6, उ. 1 में लोहे आदि के पात्र तथा लोहे आदि के बंधन युक्त पात्र ग्रहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org