________________ बसवां उद्देशक] [217 सूत्र 5 अनन्तकाय-संयुक्त आहार करे / सूत्र 6 आधाकर्म दोष का सेवन करे / सूत्र 7-8 वर्तमान या भविष्य सम्बन्धी निमित्त कहे। सूत्र 9-10 शिष्य का अपहरण आदि करे। सूत्र 11-12 दीक्षार्थी का अपहरण आदि करे। सूत्र 13 आने वाले साधु के आने का कारण जाने बिना आश्रय दे / सूत्र 14 कलह उपशान्त न करने वाले के या प्रायश्चित्त न करने वाले के साथ पाहार करे। सूत्र 15-18 प्रायश्चित्त का विपरीत प्ररूपण करे या विपरीत प्रायश्चित्त दे। सूत्र 19-24 प्रायश्चित्त सेवन, उसके हेतु और संकल्प को सुनकर या जानकर भी उस भिक्षु के साथ आहार करे। सूत्र 25-28 सूर्योदय या सूर्यास्त के संदिग्ध होने पर भी आहार करे / सूत्र 29 रात्रि के समय मुख में आये उद्गाल को निगल जावे / सूत्र 30-33 ग्लान की सेवा न करे अथवा विधिपूर्वक सेवा न करे / सूत्र 34-35 चातुर्मास में विहार करे। सूत्र 36-36 पर्युषण (संवत्सरी) निश्चित दिन न करे और अन्य दिन करे। सूत्र 38 पर्युषण के दिन तक लोच न करे / सूत्र 39 पर्युषण के दिन चौविहार उपवास न करे। सूत्र 40 पर्युषणाकल्प गृहस्थों को सुनावे / सूत्र 41 चातुर्मास में वस्त्र ग्रहण करे / ऐसी प्रवृत्तियां का गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है / ___ इस उद्देशक के 16 सूत्रों के विषय का कथन निम्न आगमों में है, यथासूत्र 1-4 अविनय आशातनाओं का कथन दशाश्रुतस्कन्ध दशा 1 व 3 में, उत्तराध्ययन अ. 1 व अ. 17 में, दशवैकालिक अ. 9 में तथा अन्य आगमों में भी हुआ है। 5 अनन्तकाययुक्त आहार आ जाने पर उसके परिष्ठापन करने का कथन प्राचा. श्रु. 2, अ. 1, उ. 1 में है। 6 प्राधाकर्म दोषयुक्त आहार ग्रहण करने का निषेध आचा. श्रु. 2, अ. 1, उ. 9 तथा सूय. श्रु. 1, अ. 10, गा. 8 व 11 में तथा अन्य अनेक स्थलों में है। सूत्र 7-8 निमित्त कथन का वर्णन उत्तरा. अ. 8, अ. 17 तथा अ. 20 में है / सूत्र 25-29 रात्रि भोजन निषेध के चार भाँगे और उद्गाल निगलने का सूत्र बृहत्कल्प उ. 5 में है / सूत्र 34-35 चातुर्मास में विहार करने का निषेध बृहत्कल्प उद्देश. 1, सूत्र 36 में है / सूत्र 41 चातुर्मास में वस्त्र ग्रहण करने का निषेध बृहत्कल्प उद्देश. 3, सू. 16 में है। इस उद्देशक के 25 सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथा--- सूत्र 9-12 शिष्य व दीक्षार्थी सम्बन्धी इस तरह का स्पष्ट कथन व प्रायश्चित्त इनका समावेश तीसरे महाव्रत में हो सकता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org