________________ 200] [निशीषसूत्र मध्यवर्ती तीर्थंकरों के शासन में प्राधाकर्म में जिन साधु या साध्वी का उद्देश्य नहीं है, उन्हें ग्रहण करना कल्पता है। जिस एक साधु का या संघ का उद्देश्य हो तो उस साधु को या संघ को ग्रहण करना नहीं कल्पता है / आधाकर्म और औद्देशिक-प्राधाकर्म के दो विभाग हैं 1. जिस प्राधाकर्म आहारादि में एक या अनेक साधुओं का उद्देश्य है, उनके लिये वह आहारादि प्राधाकर्म है। 2. जिनका उद्देश्य नहीं है, उनके लिये वही आहारादि प्रौद्देशिक हैं / मध्यम तीर्थंकरों के शासन में "आधाकर्म' अग्राह्य होता है। प्रथम व अन्तिम तीर्थकर के शासन में "प्राधाकर्म और प्रौद्देशिक” दोनों अग्राह्य होते हैं / , इस अन्तर के कारण को समझाने के लिये व्याख्याकार ने सरलता और वक्रता का कारण कहा है और उन्हें गृहस्थ और साधु दोनों पर उदाहरण सहित घटित किया है। निमित्तकथन-प्रायश्चित्त 7. जे भिक्खू पडुप्पण्णं निमित्तं वागरेइ, वागरेंतं वा साइज्जइ / 8. जे भिक्खू अणागयं निमित्तं वागरेइ, वागरेंतं वा साइज्जइ / 7. जो भिक्षु वर्तमान संबंधी निमित्त का कथन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 8. जो भिक्षु भविष्य सम्बन्धी निमित्त का कथन करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-लाभ, अलाभ, सुख, दुःख और मरण ये निमित्त के छह प्रकार हैं / इन छह के भूत भविष्य और वर्तमान ये तीन-तीन भेद हैं। निमित्त बताने के अनेक हेतु हैं, यथा-. 1. आहारादि की उपलब्धि के लिये, 2. यश:कीर्ति या प्रतिष्ठा के लिये, 3. किसी के लिहाज से, 4. किसी के हित के लिए या अनुकम्पा के लिये इत्यादि / निमित्त बताने के अनेक तरीके हैं, यथा-. 1. हस्तरेखा से, पादरेखा से, मस्तकरेखा से, 2. शरीर के अन्य लक्षणों से, 3. तिथि, वार या राशि से, 4. जन्मतिथि या जन्मकुण्डली से, 5. प्रश्न करने से इत्यादि / वर्तमान निमित्त के उदाहरण 1. मैंने अमुक व्यक्ति को अमुक के पास भेजा है, वहाँ उसे धन की राशि मिल गई या नहीं? वह आ रहा है या नहीं? , 2. कोई विदेश गया है, वह वहाँ जीवित है या मर गया ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org