________________ वसवां उद्देशक [205 15. जो भिक्षु लघुप्रायश्चित्तस्थान को गुरु प्रायश्चित्तस्थान कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। 16. जो भिक्षु गुरुप्रायश्चित्तस्थान को लघु प्रायश्चित्तस्थान कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। 17. जो भिक्षु लघुप्रायश्चित्तस्थान का गुरुप्रायश्चित्त देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है। 18. जो भिक्षु गुरुप्रायश्चित्तस्थान का लघु प्रायश्चित्त देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन-दो सूत्रों में विपरीत प्ररूपणा करने का प्रायश्चित्त कहा गया है और दो सूत्रों में राग-द्वेष से या अज्ञान से कम या अधिक प्रायश्चित्त देने का प्रायश्चित्त कथन है। अधिक प्रायश्चित्त देने से साधु को पीड़ा होती है, उसकी अननुकम्पा होती है तथा आलोचक भय के कारण फिर कभी आलोचना नहीं करता है। कम प्रायश्चित्त देने से पूर्ण शुद्धि नहीं होती है और पुनः दोष सेवन की सम्भावना रहती है। अतः प्रायश्चित्त देने वाले अधिकारी को विपरीत प्रायश्चित्त न देने का ध्यान रकना चाहिए / प्रायश्चित्त योग्य भिक्ष के साथ प्राहार करने का प्रायश्चित्त 19. जे भिक्खू उग्घाइय सोच्चा गच्चा संभुजइ, संभुजंतं वा साइज्जइ। 20. जे भिक्खू उग्घाइय-हेउं सोच्चा गच्चा संभंजइ, संभुजंतं वा साइज्जइ / 21. जे भिक्खू उग्घाइय-संकप्पं सोचा णच्चा संभुजइ, संभुजतं वा साइज्जइ / 22. जे भिक्खू अणुग्धाइय सोच्चा गच्चा संभुजइ संभुजंतं वा साइज्जइ। 23. जे भिक्खू अणुग्घाइय-हेउं सोच्चा गच्चा संभुजइ, संभुजंतं वा साइज्जइ / 24. जे भिक्खू अणुग्घाइय-संकप्पं सोच्चा णच्चा संभुजइ संभुजंतं वा साइज्जइ / 19. जो भिक्षु लघु प्रायश्चित्तस्थान के सेवन करने का सुनकर या जानकर उस साधु के साथ आहारादि का व्यवहार रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / 20. जो भिक्षु लघुप्रायश्चित्त के हेतु को सुनकर या जानकर उस साधु के साथ आहारादि का व्यवहार रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / 21. जो भिक्षु लघुप्रायश्चित्त के संकल्प को सुनकर या जानकर उस साधु के साथ आहारादि का व्यवहार रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / 22. जो भिक्षु गुरुप्रायश्चित्तस्थान के सेवन करने का सुनकर या जानकर उस साधु के साथ आहारादि का व्यवहार रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org