________________ 194] [निशीथसूत्र सूत्र बन गये, चार नहीं बने / चूणि में “इमं सुत्तवक्खाणं" पद से गाथा दी गई है। अतः चूर्णि काल तक एक सूत्र रहा होगा / इत्यादि विचारणा से यहाँ एक ही सूत्र रखा गया है / सूत्र २५-"राईसत्थमादियाणि रायसत्थाणि आहयंति कथयति ते" सत्थवाहा, "राज्ञा सार्थानि सचिवादिरूपाणि (तान्) आहयंति आमंत्रयंति राजसंदेशं वा कथयति ये ते तया।" शेष शब्दों के मूल शब्द इस प्रकार हैं१. संवाहक, 2. अभ्यंगक, 3. उद्वर्तक, 4. मज्जापक, 5. मंडापक / इसलिये इनका मूल पाठ इस प्रकार से है१. संबाह्याणं, 2. अभंगयाणं, 3. उव्वट्टयाणं, 4. मज्जावयाणं, 5. मंडावयाणं / प्रथम तीन पदों में 'मर्दन आदि करने वाले ऐसा अर्थ होता है, अंतिम दो पदों में स्नान कराने वाले, आभूषण आदि पहनाने वाले' ऐसा अर्थ होता है / अतः मूल शब्दों की रचना के लिपिदोषों का संशोधन किया है / 'छत्तग्गहाण' प्रादि आगे के शब्द तो शुद्ध ही मिलते हैं / सूत्र २६-इस सूत्र में अंतःपुर में काम करने वाले चार व्यक्तियों का कथन है१. कृत-नपुंसक = अंतःपुर के अंदर रहने वाले रक्षक / 2. दंडरक्षक = प्रहरी, बाहर चौतरफ से रक्षा करने वाला दंडधारी पुरुष / 3. द्वारपाल = द्वार के ऊपर खड़ा रहने वाला। 4. कंचुकी = जन्म, नपुसक, रानियों के आभ्यंतर, बाह्य कार्य करते हुए अंतःपुर में ही रहने वाले। सूत्र २७-इस सूत्र में दासियों के नाम के पाठ को कई प्रतियों में 'जाव' शब्द से सूचित करके दो नाम ही दिये हैं तथा कई प्रतियों में संख्या 17, 18 व 21 है / 21 की संख्या वाला पाठ उपयुक्त है, क्योंकि 18 देश की दासियां' सूत्रों में प्रसिद्ध हैं और तीन शरीर की आकृति से---१. कुब्ज, 2. वक्र (झुकी हुई), 3. वामन दासियां कही हैं / नवम उद्देशक का सारांश १-५-राजपिंड ग्रहण करे, खावे / अंतःपुर में प्रवेश करे, अंतःपुर में से आहार मंगवावे। ६-द्वारपाल-पशु आदि के निमित्त का राजपिंड ग्रहण करे / ७-भिक्षार्थ जाते 4-5 दिन हो जाएँ फिर भी राजा के 6 स्थानों की जानकारी न करे। ८-९-राजा या रानी को देखने के संकल्प से एक कदम भी चले / १०--शिकार आदि के लिये गये राजा का आहार ग्रहण करे। ११-राजा भोजन करने गये हों, उस स्थल में उस समय भिक्षार्थ जावे / १२--राजा जहां कहीं ठहरे हों, वहाँ ठहरे। १३-१८-युद्ध, यात्रा या पर्वत, नदी की यात्रार्थ जाते-आते राजा का आहार ग्रहण करे / १९-राज्याभिषेक की हलचल के समय उधर जावे-आवे / - २०-दस बड़ी राजधानियों में एक महीने में एक बार से अधिक बार जावे / Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org