________________ नवम उद्देशक {185 के लिये निकलता है या प्रवेश करता है या निकलने वाले का या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है।) ' 'छः दोषस्थान ये हैं१. कोष्ठागारशाला, 2. भाण्डागारशाला, 3. पानशाला, 4. क्षीरशाला, 5. गंजशाला, 6. महानसशाला। विवेचन--राजधानी आदि में प्रवेश करने के बाद भिक्षा के लिये जाने वाले साधु को शय्यातर एवं स्थाप्य कुल के समान सर्वप्रथम राजा के इन 6 स्थानों की जानकारी कर लेनी चाहिये / क्योंकि ये छहों दोषों के स्थान हैं / 4-5 दिन में उक्त छह स्थानों की जानकारी न करे और भिक्षार्थ चला जाए तो उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है। विशेष शब्दों की व्याख्या१. कोटागार-धान्य, मेवा आदि का कोठार / 2. भंडागार-सोना, चांदी, रत्न आदि धन का भंडार / 3. पाण - "सुरा-मधु-सोधु-खंडग-मच्छंडिय-मुहिया पभिईण पाणगाणि / " मद्यस्थान आदि। 4. 'खोर'- खीरघरं, जत्थ खीर-दधि-णवणीयं-तक्कादि अच्छंति दूध, दही, घी आदि का स्थान। 5. 'गंज'--"जत्थ धणं वभिज्जति सा गंजसाला। जत्थ सणसत्तरसाणि धण्णाणि कोट्टिजंति"--जहां सत्रह प्रकार के धान्य कूटे जाते हैं, वह स्थान। 6. 'महाणस'-उवक्खडणसाला-रसोईघर / * इन स्थानों की जानकारी न होने पर वहां भिक्षु भिक्षार्थ पहुंच सकता है। उन स्थानों के रक्षक पुरुष यदि भद्र हों तो राजपिंड ग्रहण करने का दोष लगता है और प्रतिकूल हों तो चोर आदि समझ कर वे कष्ट भी दे सकते हैं / गिरफ्तार कर सकते हैं - 'जे रक्खगा ते भद्द पंता, भद्देसु रायपिंडदोसा, पंतेसु गेण्हणादयो दोसा' --चूणि / अतः इन स्थानों की जानकारी करना आवश्यक है। राजा प्रादि को देखने के लिए प्रयत्न करने का प्रायश्चित्त-- 8. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं आगच्छमाणाणं वा णिग्गच्छमाणाणं वा पयमवि चक्खुवंसण-वडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ / ... 9. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इत्थीओ सव्यालंकार-विभूसियाओ पयमवि चवखुदंसण-वडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org