________________ सातवां उद्देशक] 75. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से घुन या दीमक लग जाने से जो काष्ठ जीव युक्त हो उस पर तथा जिस स्थान में अंडे, त्रस जीव, बीज, हरीघास, प्रोस, पानी, कीडी आदि के बिल, लीलन-फूलन, गीली मिट्टी या मकडी के जाले हों, वहां पर स्त्री को बिठाता है या सूलाता है अथवा बिठाने वाले का या सलाने वाले का अनुमोदन करता है (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन प्रारम्भ के चार सूत्रों में मूल भूमि तो अचित्त ही कही गई है किन्तु प्रथम सूत्र में सचित्त पृथ्वी के निकट की अचित्त भूमि कही गई है, दूसरे सूत्र में वर्षा आदि के जल से स्निग्धता युक्त भूमि कही गई है, तीसरे सूत्र में सचित्त रजयुक्त भूमि कही गई है और चौथे सूत्र में सचित्त मिट्टी बिखरी हुई भूमि कही गई है। पांचवें, छठे व सातवें सूत्र में भूमि, शिला व ढेला-पत्थर स्वयं सचित्त कहे गए हैं। आठवें सूत्र के प्रारंभ में जीवयुक्त काष्ठ का कथन है। उसके पश्चात् समुच्चय रूप से अनेक प्रकार के जीवों से युक्त स्थानों का निर्देश किया गया है। 'सअंडे' शब्द से यहाँ विकलेंद्रियों के अंडों से युक्त स्थान समझना चाहिये। प्रोस पोर उदक इन दो शब्दों से अप्काय का सूचन किया है, अत: आगे आये “दगमट्टि" से पृथ्वीकाय और अप्काय के मिश्रण का सूचन किया है। इसमें तालाब आदि के किनारे की मिट्टी तथा कुंभार द्वारा गीली बनाई गई मिट्टी भी हो सकती है, वह सचित्त या मिश्र होती है। अंक में पल्यंक-निषद्यादि करने का प्रायश्चित्त 76. जे भिक्खू भाउम्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वा, पलियंकसि वा णिसीयावेज्ज बा, तुयट्टावेज्ज वा, णिसोयावेतं वा तुयट्टावेतं वा साइज्जइ / 77. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अंकसि वा, पलियंकसि वा णिसीयावेत्ता वा, तुयट्टावेत्ता वा, असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा अणुग्घासेज्ज वा अणुप्पाएज्ज वा, अणुग्धासंतं वा अणुप्पाएंतं वा साइज्जइ / 76. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को अर्धपल्यंक प्रासन में या पूर्ण पल्यंकासन में--गोद में बिठाता है या सुलाता है अथवा बिठाने वाले का या सुलाने वाले का अनुमोदन करता है। 77. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को एक जंधा पर या पर्यकासन में बिठाकर या सुलाकर अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य खिलाता या पिलाता है अथवा खिलाने-पिलाने वाले का अनुमोदन करता है / (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है / ) धर्मशाला आदि में निषद्यादिकरण-प्रायश्चित्त 78. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा, गाहावइकुलेसु वा, परियावसहेसु, वा, णिसीयावेज्ज वा, तुयट्टावेज्ज वा, णिसीयावेतं वा, तुयट्टावेतं वा साइज्जइ। 79. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए आगंतारेसु वा, आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org