________________ छठा उद्देशक [153 18. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए पोसंतं वा पिट्ठतं वा, भल्लायएण उप्पाएत्ता सीओदगवियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता पधोवित्ता, अण्णयरेणं आलेवणजाएणं आलिपित्ता विलिपित्ता तेल्लेण वा जाव णवणीएण वा अभंगेत्ता मक्खेत्ता, अण्णयरेण धूवजाएण धूवेज्ज वा पधूवेज्ज वा धूवंतं वा पर्वतं वा साइज्जइ। 19. जे भिक्खू माउग्गामस्त मेहुणवडियाए “कसिणाई" वत्थाइं धरेइ, धरतं वा साइज्जइ / 20. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणबडियाए “अहयाई" वत्थाई धरेइ, धरतं वा साइज्जइ / 21. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए “धोयरत्ताई" वत्थाई धरेइ, धरतं वा साइज्जइ / 22. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए "चित्ताई" वत्थाइंधरेइ, धरतं वा साइज्जइ / 23. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए "विचित्ताई" वत्थाई धरेइ, धरतं वा साइज्जइ / 24-77. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अप्पणो पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ / एवं तइयउद्देसगगमेण णेयध्वं जाव जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए गामाणुगामं दुइज्जमाणे अप्पणो सीसदुवारियं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ / 78. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए खोरं वा, दहिं वा, णवणीयं वा, सप्पिं बा, गुलं वा, खंडं वा, सक्करं वा, मच्छंडियं वा, अण्णयरं पणीयं आहारं आहारेइ, आहारतं वा साइज्जइ। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणुग्धाइयं / 1. जो भिक्षु स्त्री को मैथुन सेवन के लिये कहता या कहने वाले का अनुमोदन करता है। 2-10. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से हस्तकर्म करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। इस तरह प्रथम उद्देशक के सूत्र 1 से 9 तक के समान पूरा पालापक यहां जान लेना चाहिये यावत् जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से अंगादान को किसी अचित स्रोत-छिद्र में प्रविष्ट करके शुक्र पुद्गल निकालता है या निकालने वाले का अनुमोदन करता है। 11. जो भिक्षु मैथुन सेवन के संकल्प से स्त्री को स्वयं वस्त्ररहित करता है या वस्त्ररहित होने के लिए कहता है या ऐसा करने वाले का अनुमोदन करता है / 12. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से कलह करता है या कलह उत्पादक वचन कहता है या कलह करने के लिए बाहर जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है। 13. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथन सेवन के संकल्प से पत्र लिखता है, लिखवाता है या पत्र लिखने के लिये बाहर जाता है या जाने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org