________________ पांचवां उद्देशक] [151 इस उद्देशक के 52 सूत्रों का दो विभागों में संग्रह न करके मात्र संक्षिप्त निर्देश ही कर देना पर्याप्त है। सूत्र नं. 23 के विषय काव्यवहार सूत्र के आठवें उद्देशक में तथा सूत्र 36 व 38 के विषयों का प्राचारांग श्रु० 2 अ० 2 उ० 1 में विधान हुआ है, इस उद्देशक के शेष सभी विषय अन्य आगम में नहीं आये हैं, किन्तु विधि-निषेध की स्पष्ट सूचना करते हुए प्रायश्चित्त का विधान करने वाले हैं। यह इस उद्देशक की पूर्व के उद्देशकों से विशेषता है। 1. इस उद्देशक के 3 सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में है यथा-सूत्र-२३, 36, 38 / 2. इस उद्देशक के शेष 49 सूत्रों के विषय का कथन अन्य भागमों में नहीं है। // पांचवां उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org