________________ 118] [निशीथसूत्र परिष्ठापना समिति के दोषों का प्रायश्चित्त 118. जे भिक्खू साणुप्पए उच्चार-पासवणभूमि ण पडिलेहेइ, ण पडिलेहतं वा साइज्जइ / 119. जे भिक्खू तओ उच्चार-पासवणभूमिओ न पडिलेहेइ, न पडिलेहंतं वा साइज्जइ / 120. जे भिक्खू खुड्डागंसि थंडिलंसि उच्चार-पासवर्ण परिट्ठवेइ, परि?तं वा साइज्जइ / 121. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं अविहोए परिठ्ठवेइ, परिट्ठवेतं वा साइज्जइ / 122. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिवेत्ता ण पुछइ, ण पुछतं वा साइज्जइ / 123. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिठ्ठवेत्ता कट्टेण वा, किलिंचेण वा, अंगुलियाए वा, सलागाए वा पुंछइ, पुंछतं वा साइज्जइ। 124. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिट्ठवेत्ता णायमइ, णायमंतं वा साइज्जइ / 125. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिट्ठवेत्ता तत्थेव आयमइ, आयमंतं वा साइज्जइ / 126. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिवेत्ता अइदूरे आयमइ आयमंतं का साइज्जइ। 127. जे भिक्खू उच्चार-पासवणं परिठ्ठवेत्ता परं तिष्हं णावापूराणं आयमइ, आयमंतं वा साइज्जइ। 118. जो भिक्षु चौथी पोरिसी के चौथे भाग में उच्चार-प्रस्रवण की भूमि का प्रतिलेखन नहीं करता है या नहीं करने वाले का अनुमोदन करता है / 119. जो भिक्षु तीन उच्चार-प्रस्त्रवण भूमि की प्रतिलखना नहीं करता है या नहीं करने वाले का अनुमोदन करता है / 120. जो भिक्षु एक हाथ से भी कम लंबी-चौड़ी जगह में उच्चार-प्रस्रवण परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है / 121. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को अविधि से परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। 122. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर मलद्वार को नहीं पोंछता है या नहीं पोंछने वाले का अनुमोदन करता है। 123. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर मलद्वार को काष्ठ से, बांस की खपच्ची से, अंगुली से या बेंत आदि की शलाका से पोंछता है या पोंछने वाले का अनुमोदन करता है। 124. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर आचमन नहीं करता है या नहीं करने वाले का अनुमोदन करता है। 125. जो भिक्षु उच्चार-प्रस्रवण को परठ कर वहीं उसके ऊपर ही आचमन करता है या आचमन करने वाले का अनुमोदन करता है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org