________________ दूसरा उद्देशक] 8. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में या आश्रमों में कौतूहलवश अन्यतीथिक या गृहस्थ स्त्रियों से प्रशन, पान, खाद्य या स्वाद्य मांग-मांग कर याचना करता है या मांगमांग कर याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 9. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा आश्रमों में अन्यतीथिक या गृहस्थ द्वारा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य सामने लाकर दिये जाने पर निषेध करके फिर उसके पीछे-पीछे जाकर, उसके आसपास व सामने आकर तथा मिष्ट वचन बोलकर मांग-मांग कर याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है / 10. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगृहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा आश्रमों में अन्यतोथिकों या गृहस्थों द्वारा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य सामने लाकर दिये जाने पर निषेध करके फिर उसके पीछे-पीछे जाकर, उसके आसपास व सामने आकर तथा मिष्ट वचन बोलकर मांग-मांग कर याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 11. जो भिक्ष धर्मशालाओं में, उद्यानगहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा आश्रमों में अन्यतीथिक या गृहस्थ स्त्री द्वारा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य सामने लाकर दिये जाने पर निषेध करके फिर उसके पीछे-पीछे जाकर, उसके आसपास व सामने आकर तथा मिष्ट वचन बोलकर मांग-मांग कर याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। 12. जो भिक्षु धर्मशालाओं में, उद्यानगहों में, गृहस्थों के घरों में अथवा आश्रमों में अन्यतीथिक या गृहस्थ स्त्रियों द्वारा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य सामने लाकर दिये जाने पर निषेध करके फिर उसके पीछे-पीछे जाकर, उसके आसपास व सामने आकर तथा मिष्ट वचन बोलकर मांग-मांग कर याचना करता है या याचना करने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन–इन बारह सूत्रों में धर्मशाला आदि स्थानों के कथन से भिक्षा ग्रहण के सभी स्थानों का ग्रहण किया गया है तथा दो प्रकार के भिक्षादाता कहे गये हैं। 'अन्यतोथिक' अर्थात् अन्य मत के गृहस्थ और 'गृहस्थ'---अर्थात् स्वमत के गृहस्थ / प्रथम सूत्रचतुष्क में खाद्य पदार्थ का नाम ले-लेकर याचना करने का प्रायश्चित्त कहा है / आवश्यक सूत्र के भिक्षादोषनिवृत्ति पाठ में भी "मांग-मांग कर लेना" अतिचार कहा है। ऐसा करने पर लोग सोचते हैं कि ये भिखारी की तरह क्यों मांगते हैं इत्यादि। सहज भाव से गहस्थ जो अशनादि देना चाहे उसमें से आवश्यक कल्प्य पदार्थ ग्रहण करना "अदोन वृत्ति" है और मांग-मांग कर याचना करना "दीन वृत्ति" है / दीन वृत्ति से भिक्षा ग्रहण करना दोष है अतः इन सूत्रों में उसका प्रायश्चित्त कहा गया है। गीतार्थ साधु विशेष कारण से अशनादि का नाम निर्देश करके विवेकपूर्वक याचना कर सकता है / यहां अकारण मांग कर याचना करने का प्रायश्चित्त विधान है। इस सूत्रचतुष्क में एक पुरुष या अनेक पुरुष, तथा एक स्त्री या अनेक स्त्रियों की विवक्षा है / द्वितीय सूत्रचतुष्क में "कौतुक वश" मांग-मांग कर याचना करने का प्रायश्चित्त कहा है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org