________________ दूसरा उद्देशक] सूत्र-क्रम [81 पद-संख्या सूत्र-संख्या 41 सूत्र-विषय नख का सूत्र (आदि सूत्र) जंघा--रोम सूत्र वत्थि-रोम सूत्र रोमराजि सूत्र कक्ख--रोम सूत्र दाढी का सूत्र मूछ का रोम सूत्र दांत के सूत्र होंठ के सूत्र आंख के सूत्र नासा-रोम का सूत्र भमुग-रोम का सूत्र मस्तक के बाल का सूत्र (अंतिम सूत्र) 47 Mara-oroom orm wy rror or or or or or or or or or oraoron 48-50 51-56 57-63 26 3 अन्य किसी सूत्र को बढ़ाने~~घटाने में या क्रमभंग करने में चर्णिकारनिदिष्ट 13 पदों का या 26 सूत्रों का विवक्षित क्रम नहीं बनता है, जब कि उपर्युक्त क्रम निर्विरोध है। रोमराजि-तीर्थंकर, युगलिक आदि के शरीरवर्णन में गुह्य प्रदेश के बाद रोमराजि का वर्णन आता है / यहां भी भाष्य चूर्णी में रोमराजि की व्याख्या है तथा “रोमाइं" ऐसा पाठ अन्य प्रतियों में उपलब्ध भी होता है / अतः "रोमाराई" शब्दयुक्त सूत्र रखा गया है किन्तु "चक्षुरोम" का सूत्र रखने से 13 व 26 को संख्या में तथा व्याख्या एवं अर्थसंगति में विरोध आता है / पुनरुक्ति भी होती है अत: उस सूत्र को नहीं रखा है। ___ नासा-पास-रोमराजि से पेट और पीठ के रोमों का ग्रहण हो जाता है इसलिए "पासरोम" संबंधी सूत्र अनावश्यक है / वास्तव में "पासरोम" का शरीर में अलग अस्तित्व भी नहीं है / तथा "पास” करने से "नासा"-संबंधी सूत्र घट जाता है। प्रकाशित चूर्णी के मूल पाठ में भी 'नासा' नहीं है जब कि इस "नासा रोम" की चूर्णी विद्यमान है और शरीर में नाक के बालों का अलग अस्तित्व भी है तथा उसके काटने की प्रवृत्ति भी होती है / ओष्ठ कांख और अक्षिपत्र-संबंधी आठ सूत्रों का मूल पाठ प्रायः सभी प्रतियों में समान उपलब्ध होने से तथा चूर्णी निर्दिष्ट 13 पद--२६ सूत्र संख्या में संगत होने से और शरीर की रचना के अनुसार क्रम हो जाने से इन आठ सूत्रों की व्याख्या नहीं होते हुए इनका मूल पाठ में स्वीकार करना आवश्यक होने से क्रमप्राप्त स्थान पर इनको रखा गया है। "कारण-अकारण" का वर्णन तथा बिना कारण इन सूत्रों में कही गई प्रवृत्तियां करने की अपेक्षा ही ये प्रायश्चित्त-कथन है, इत्यादि विवेचन इसी उद्देशक के सूत्र 34 के विवेचन से समझ लेना चाहिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org