________________ दूसरा उद्देशक] [87 3. पोंड-सूती कपास / पोंडा-वमणी, तस्स फलं, तस्स पम्हा रेसे कच्चणिज्जा" 4. अमिल—इसकी व्याख्या प्रायः नहीं मिलती है / प्राक (आकडा) या ऊन विशेष ऐसे अर्थ क्वचित् मिलते हैं। 5. कप्पास--कातने के योग्य स्थिति में जो ऊन, रूई आदि हों उनको यहाँ 'कप्पास' कहा है। 6. वसीकरण-'अवसा वसे कोरंति जेणं तं वसीकरण-सुत्तयं'–कपास से डोरा बनाकर या डोरों को बटकर मंत्र से भावित करना, जिसके प्रयोग से किसी को बशीभूत किया जा सके। गृहादि विभिन्न स्थलों में मल-मूत्र परिष्ठापन प्रायश्चित्त-- 71. जे भिक्खू गिहंसि वा, गिहमुहंसि वा, गिह-दुवारियंसि वा, गिहपडिदुवारियसि वा, गिहेलुयंसि वा, गिहंगणंसि वा, गिहवच्चंसि वा उच्चार-पासवणं परिद्ववेइ परिर्वतं वा साइज्जइ / 72. जे भिक्खू मडग-गिहंसि वा, मडग-छारियसि वा, मडग-थूभियंसि वा, मडग-आसयंसि वा, मडग-लेणं सि वा, मडग-थंडिलंसि वा, मडग-बच्चंसि वा उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेंतं वा साइज्जई। 73. जे भिक्खू इंगाल-दाहंसि वा, खार- दाहंसि वा, गायदाहंसि वा, तुसदाहंसि वा, भुसदाहंसि वा उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ। 74. जे भिक्खू अभिणवियासु वा, गोलेहणियासु, अभिणवियासु वा मट्टियाखाणिसु, अपरिभुज्जमाणियासु वा, अपरिभुज्जमाणियासु वा उच्चारपासवणं परिदृवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ / 75. जे भिक्खू सेयाययणंसि वा, पंकसि वा, पणगंसि वा, उच्चारपासवणं परिवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ। 76. जे भिक्खू उंबरवच्चंसि वा, णग्गोहबच्चंसि वा, आसोत्थवच्चंसि वा, पिलखुवच्चंसि वा उच्चार-पासवर्ण परिवेइ, परितं वा साइज्जइ / 77. जे भिक्खू डागवच्चंसि वा, सागवच्चंसि वा, मूलगवच्चंसि वा, कोत्थु बरिवच्चंसि वा, * खारवच्चंसि वा, जीरयवच्चंसि वा, दमणगवच्चंसि वा, मरुगवच्चंसि वा, उच्चारपासवणं, परिढुवेइ परिवेंतं वा साइज्जइ। 78. जे भिक्खू इक्खुवणसि वा, सालिवणंसि वा, कुसंभवणंसि वा कप्पास-वर्णसि वा उच्चारपासवणं परि? वेइ, परिढुवेंतं वा साइज्जइ / 79. जे भिक्खू असोगवर्णसि वा, सत्तिवण्णवणंसि वा, चंपगवणंसि वा, चूय-- वर्णसि वा, अण्णयरेसु वा तहप्पगारेसु, पत्तोववेएसु, पुप्फोववेएसु, फलोववेएसु, बोओववेएसु उच्चार-पासवणं परिटुवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ।। 71. जो भिक्षु घर में, घर के "मुख' स्थान में, घर के प्रमुख द्वारा स्थान में, घर के उपद्वार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org