________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक AM प्रवृतियों से तप प्रायश्चित्त, भगवान महावीर स्वामी की अनुकम्पा प्रवृत्ति का उदाहरण, भगवतीसूत्र शतक 15 से, प्रस्तुत सूत्र का सार / प्रत्याख्यानभंग करने का प्रायश्चित्त शबलदोष, उत्तरगुण के पच्चक्खण, प्रत्याख्यान भंग करने से संभावित दोष, सूत्राशय, गीतार्थ की आज्ञा से प्रागारसेवन, विवेकज्ञान, द्धता की प्रेरणा। 249-250 250 सचित्त नमक पानी आदि से संयुक्त आहार खाने का प्रायश्चित्त मिश्रित आहार के उदाहरण, सूत्राशय एवं विवेकज्ञान, गृहस्थों के रिवाज, प्रायश्चित्तविवेक। 251-255 सरोमचर्म के उपयोग करने का प्रायश्चित्त सूत्राशय का स्पष्टीकरण, सरोमचर्म उपयोग करने के दोष, परिस्थितिक विधान, निषेध का कारण, प्रायश्चितविवेक, रोमरहित चर्म का कल्प, अप्रतिलेख्यता से सम्बन्धित अन्य पुस्तक, तृण आदि, पुस्तक रखने के दोष, चार दृष्टान्त, तण पंचक के दोष, अपवादिक स्थिति में ये उपकरण ग्रहण एवं प्रायश्चित्त, आगम वर्णनों से फलित आशय, पुस्तक उपयोग करने रखने का विवेक / वस्त्राच्छादित पीढ़े पर बैठने का प्रायश्चित्त "अहि→इ" क्रिया का विशाल अर्थ, पीढों की कल्प्याकल्प्यता, सूत्राशय एवं दोष / निग्नन्यो की चद्दर सिलवाने का प्रायश्चित्त चद्दर के प्रकार, ऋमिक विवेक एवं प्रायश्चित्त, दोषों की संभावना, सिलाई करने का प्रसंग। 255-256 256-261 पांच स्थावरकाय को विराधना का प्रायश्चित्त अस्तित्व एवं विराधना न करने के आगमस्थल, पृथ्वीकाय के सचित्त-अचित्त का परिचय एवं विराधनास्थल गोचरी में, मार्ग में। अकाय का परिचय और विराधना स्थल गोचरी और मार्ग, अग्नि की विराधना गोचरी या उपाश्रय में, वायु की विराधना, हवा करने या अयतना से कार्य करने में, सूक्ष्म दृष्टि से विराधना, दशवकालिक का विधान और अयतना का अर्थ, वनस्पति की विराधना मार्ग में, गोचरी में, परिष्ठापन में। इनके अलग-अलग प्रायश्चित्त / अस की विराधना मार्ग में, गोचरी में, शय्या में, उपधि में। मवेषणा के साथ पदार्थों के परीक्षण में भी कुशलता होना, विवेक और परिष्ठापन, जीवरहित मकान गवेषणा का विवेकज्ञान, उपधि का उभयकाल प्रतिलेखन एवं धप लगाना प्रादि, प्रायश्चित्त / 261-262 वृक्ष पर चढ़ने का प्रायश्चित्त वक्षों के तीन प्रकार एवं प्रायश्चित्त, परिस्थितियां, सकारण का सूत्रोक्त प्रायश्चित्त, वक्ष पर चढ़ने के दोष, अनन्तकायिक वृक्ष का सहारा / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org