________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक 279-281 34-41 रात्रि में विलेपन करने का प्रायश्चित्त सूत्राशय और तुलना, गोबर सम्बन्धी ज्ञान और विवेक / अन्य विलेपन के पदार्थ, आवश्यक परिस्थिति में रात्रि उपयोग का सूत्रोक्त प्रायश्चित्त, विलेप्य पदार्थों के चार प्रकार / 42-43 गृहस्थ से उपधि वहन कराने का प्रायश्चित संयम विधि और प्रविधि का ज्ञान, हानियां एवं दोष परम्परा, आहार देने के दोष, शुल्कचिन्ता, विवेकज्ञान एवं प्रायश्चित्त / 281 282-283 महानदी पार करने का प्रायश्चित्त अन्य सूत्रों के वर्णन से सूत्राशय की स्पष्टता, दुक्खुत्तो तिक्खुत्तो दो शब्द क्यों ? "उत्तरणं संतरणं" की व्याख्या, पांच महानदियों के कथन से अन्य का ग्रहण, एरावती नदी में कहीं अल्प पानी भी, उत्सर्ग-प्रपवाद का विवेकज्ञान / उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है अथवा नहीं है 283-284 284-285 उद्देशक 13 1.8 सचित पृथ्वी आदि पर खड़े रहने आदि का प्रायश्चित्त 286-287 9-11 अनावृत ऊंचे स्थानों पर खड़े रहने आदि का प्रायश्चित्त 287-288 शब्दार्थ, स्थान-शय्या-निषद्या की विचारणा, निषेध का कारण, आचारांग में विधान एवं विराधनाओं का स्पष्टीकरण, 'अन्तरिक्षजात' का अर्थभ्रम एवं सही अर्थ / 12 गहस्थ को शिल्पकला आदि सिखाने का प्रायश्चित्त 289 शब्दों की व्याख्या, उपलक्षण से 72 कला, संयम में दोष / 13-16 गृहस्थ को कठोर शब्द आदि से आशातना करने का प्रायश्चित भिक्षु का भाषाविवेक, अविवेक से कलह एवं कर्मबंध, अन्य सूत्रों में भाषाविवेकज्ञान / 17-27 कौतुककर्म आदि के प्रायश्चित्त 291-293 शब्दों की व्याख्या युक्त स्पष्टार्थ, विशेष जानकारी हेतु दसवें उद्देशक की भलावण / 28 मार्गादि बताने का प्रायश्चित्त शब्दार्थ, दोष की परिस्थितियां, आचारांग का विधान, सूत्र का तात्पर्य, परिस्थिति में विवेक पूर्ण भाषा एवं प्रायश्चित्त ग्रहण / 29.30 धातु एवं धन बताने का प्रायश्चित्त धातु के तीन प्रकार, बताने पर दोष एवं प्रायश्चित्त, निधि निकालने में भी अनेक दोष / 294 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org