________________ 10] [निशीयसूत्र 3. अभ्यंगन सूत्र का दृष्टांत--जिस प्रकार अग्नि को “घी" से सिंचने पर वह अत्यधिक प्रज्ज्वलित होती है उसी तरह अंगादान का तैलादि से मालिश करने पर कामाग्नि अत्यधिक प्रदीप्त होती है। 4. उबटन सूत्र का दृष्टांत-जिस प्रकार भाले की धार को तीक्ष्ण करने पर वह अत्यधिक घातक होती है उसी तरह अंगादान का उबटन ब्रह्मचर्य का अत्यधिक घातक होता है। 5. उत्क्षालन सूत्र का दृष्टांत-जिस प्रकार सिंह की आंखों में पीड़ा होने पर किसी वैद्य के द्वारा औषध प्रयोग से शुद्धि कर देने पर वह भूखा सिंह उसे ही खा जाता है / उसी प्रकार जो अंगादान का “प्रक्षालन” करता है उसका ब्रह्मचर्य खंडित हो जाता है। 6. निश्छलन सूत्र का दृष्टांत-जिस प्रकार सोये हुये अजगर का कोई मुख खोलता है तो वह उसे खा जाता है उसी तरह जो अंगादान के त्वचा-यावरण को ऊपर करता है उसका ब्रह्मचर्य विचलित हो जाता है / 7. जिघ्रण सूत्र का दृष्टांत-एक राजा वैद्य के मना करने पर आम्र सूघता रहा, उसका परिणाम यह हुआ कि वह अम्बष्ठी व्याधि से मर गया। उसी तरह जो "अंगादान का मर्दन करके हाथ को सूघता है। उसका ब्रह्मचर्य वेद-मोहोदेय से विनाश को प्राप्त होता है। "अंगादान"-यह शब्द जननेन्द्रिय का सूचक है / ऐसे प्रसंगों में आगमकार अप्रसिद्ध पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग भी करते हैं। जिनमें कुछ शब्द रूढ अर्थवाले भी होते हैं / व्याख्याकार उन्हें “सामयिकी संज्ञा या सैद्धान्तिक प्रयोग विशेष" से सूचित करते हैं। फिर भी उन शब्दों से प्रासंगिक अर्थ भी ध्वनित हो जाता है / कुछ शब्द यौगिक व्युत्पत्तिपरक होते हैं, वे स्पष्ट रूप से उसी अर्थ को कहते हैं / इस शब्द की व्याख्या में कहा गया है कि यह शरीरावयव अंगों के उत्पादन में हेतुभूत है। अतः उसकी उत्पत्ति का कारण होने से यह अंगादान कहा जाता है / अंग, उपांग आदि के नाम इस प्रकार हैं 1. अंग-पाठ हैं---मस्तक, हृदय, उदर, पीठ, दो भुजा, दो उरु [घुटनों के ऊपर का भाग] / 2. उपांग-कान, नाक, अांख, जंघा [घुटने के नीचे का भाग]. हाथ, पांव आदि / 3. अंगोपांग नख, केश, मूछ, दाढ़ी, अंगुलियां, हस्ततल, हस्तउपतल [हथेली का उभरा हुआ भाग] / अभंगेज्ज-मक्खेज्ज–निशीथसूत्र में तीन शब्दों का प्रयोग तैल आदि से मालिश करने के अर्थ में हुआ है ---"अब्भंगेज्ज, मक्खेज्ज, भिलिंगेज्ज", इन तीनों का अर्थ मालिश करना है / एक सूत्र में इन तीन शब्दों में से जहां दो शब्दों का प्रयोग है वहाँ उनमें से प्रथम शब्द “एक बार" और दूसरा शब्द "अनेक बार" अर्थ का द्योतक है। "मक्खेज्ज" शब्द जब "अभंगेज्ज" के साथ प्रयुक्त होता है तो वह अनेक बार के अर्थ का वाचक होता है, वही मक्खेज्ज जब "भिलिंगेज्ज" के साथ प्रयुक्त होता है तब वह एक बार के अर्थ को प्रकट करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org