________________ 14] [निशीथसूत्र 4. दगवीणिका-कई स्थानों पर वर्षा आदि से पानी इकट्ठा हो जाता है, उसे निकालने का जो मार्ग बनाया जाता है, उसे “दगवीणिक" कहते हैं। 5. सिक्कग-कीड़ी, चूहा, कुत्ते आदि जीवों से खाद्य सामग्री की सुरक्षा के लिए छींका और छींके का ढक्कन रखना भी कभी आवश्यक हो जाता है उसे, "सिक्कग" कहा जाता है। 6. चिलिमिलिका--शील रक्षा के योग्य सुरक्षित स्थान न मिलने पर, आहार करने योग्य सुरक्षित स्थान न मिलने पर, मक्खी, मच्छर आदि संपातिम जीवों के अधिक हो जाने पर, उनकी रक्षा के लिये एक दिशा में यावत् पांच दिशाओं में जो पर्दा, यवनिका या मच्छरदानी आदि बनाये जाते हैं, उसे "चिलिमिलिका" कहा जाता है / इन चारों सूत्रों में कहे गये कार्य साधु को गृहस्थी से नहीं कराना चाहिए / यदि किसी विशेष परिस्थिति में गृहस्थ से कराना पड़े तो वह प्रायश्चित्त का पात्र होता है। उत्तरकरण कराने के प्रायश्चित्त 15. जे भिक्खू "सूईए" उत्तरकरणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेइ कारतं वा साइज्जइ। 16. जे भिक्खू "पिप्पलगस्स" उत्तरकरणं अण्णउत्थिएण वा गारथिएण वा कारेइ कारतं वा साइज्ज। 17. जे भिक्खू "णहच्छेयणगस्स" उत्तरकरणं अण्णउथिएण वा गारथिएण वा कारेइ कारेंतं वा साइज्ज। 18. जे भिक्खू “कण्णसोहणगस्स" उत्तरकरणं अण्णउथिएण वा गारथिएण वा कारेइ कारेंतं वा साइज्जइ। 15. जो भिक्षु सूई का उत्तरकरण अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है। 16. जो भिक्षु कतरणी का उत्तरकरण अन्यतीथिक या गृहस्थ से करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है / 17. जो भिक्षु नखछेदनक का उत्तरकरण अन्यतीथिक या गृहस्थ से करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है / 18. जो भिक्षु कर्णशोधनक का उत्तरकरण अन्यतीथिक या गृहस्थ से करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है, (उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-१. "उत्तरकरणं"-उत्तरकरण का अर्थ है--परिष्कार करना अर्थात् आवश्यकतानुसार उपयागी बनाना, सुधारना। 1. सूई की अणी व छिद्र को सुधारना / 2. कतरणी की धार तेज करना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org