________________ 30] [निशीथसूत्र सूत्र 52 फटे हुए वस्त्र के साथ एक वस्त्रखण्ड जोड़ना / सूत्र 53 फटे हुए वस्त्र के साथ तीन से अधिक वस्त्रखण्ड जोड़ना / सूत्र 54 अविधि से वस्त्रखण्ड जोड़ना / सूत्र 55 विभिन्न प्रकार के वस्त्रखण्ड जोड़ना / सूत्र 56 तीन से अधिक वस्त्रखण्ड जुड़े हुए वस्त्र को डेढ मास से अधिक रखना। सूत्र 57 गृहस्थ से गृहधूम उतरवाना। सूत्र 58 पूतिकर्म दोष युक्त आहार उपधि तथा शय्या का उपयोग करना / इत्यादि प्रवृत्तियों का गुरु मासिक प्रायश्चित्त पाता है। इस उद्देशक के 20 सूत्रों के विषय का कथन निम्न आगमों में है, यथासूत्र 1-9 हस्तकर्म करना सबल दोष कहा है / दशा. द. 21 सूत्र 10 सुगंध में आसक्त होने का निषेध / आ. श्रु. 2 अ. 1 उ. 8, प्रा. श्रु. 2 अ. 15. सूत्र 14 चेल-चिलिमिलिका रखना एवं उसके उपयोग का विधान / बृह. उ. 1.. सूत्र 31-38 अपने कार्य के लिए प्रातिहारिक ग्रहण की गई सूई आदि अन्य को देने का निषेध तथा उनके लौटाने की विधि / आ. श्रु. 2 अ. 7 उ. 1. सूत्र 58 पूतिकर्मदोष का वर्णन / सूत्रकृ. श्रु. 1 अ. 1 उ. 3. इस उद्देशक के 38 सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथा-- सूत्र 11-13 पदमार्ग का अन्य (गृहस्थ) के द्वारा निर्माण करवाना। सूत्र 15-30 सूई आदि सुधरवाना / सूई आदि बिना प्रयोजन ग्रहण करना। सूई आदि अविधि से ग्रहण करना / सूत्र 39-40 पात्र तथा दण्ड आदि का निर्माण करवाना तथा सुधरवाना, सूत्र 41-46 पात्र के थेगली लगाना / पात्र के बंधन लगाना / सूत्र 47-56 वस्त्र के थेगली लगाना, . वस्त्र के गांठ लगाना, वस्त्र खण्ड जोड़ना। सूत्र 57 औषधि के लिए गृहस्थ से गृहधूम उतरवाना / // प्रथम उद्देशक समाप्त // 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org