________________ [निशीथसूत्र प्रस्तुत सूत्र में यो विशेष शब्द हैं 1. पुप्फं, 2. कसायं / जिस पानी का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श प्रशस्त हो उसकी यहाँ "पुष्प" संज्ञा है। जिस पानी का वर्ण, गंध, रस और स्पर्श अप्रशस्त हो उसकी यहाँ “कषाय" संज्ञा है। जो पानी पुष्प-मधुर है उसे अलग पात्र में लेना चाहिए और जो कसैला हो उसे अलग लेना चाहिए। ऐसे विभिन्न प्रकार के पानी अलग-अलग पात्रों में लाना और छानना चाहिए / पहले कसैले पानी को पीना चाहिए बाद में अच्छे पानी को / रसासक्ति से मनोज्ञ पानी पी लेने पर और अमनोज्ञ को परठ देने पर लधुमासिक प्रायश्चित्त आता है। जो पानी केर, करेला, मैथी, बेसन आदि से निष्पन्न हो वह कसैला होता है / दूध आदि सुस्वादु तथा सुगन्धी पदार्थों का पानी मनोज्ञ होता है तथा शुद्धोदक एवं उष्णोदक भी मनोज्ञ होता है। स्वस्थ साधु को अनेक प्रकार के प्रासुक जल पीने में अग्लान भाव रखना चाहिए / अति कसैला पानी न पिया जा सके तो उसे परठने का प्रायश्चित्त नहीं है / मनोज्ञ भोजन खाने और अमनोज्ञ परठने का प्रायश्चित्त 44. जे भिक्खू अण्णयरं भोयणजायं पडिगाहित्ता सुभि सुभि भुजइ, दुभि दुभि परिवेइ, परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ। 44 जो भिक्षु विविध प्रकार का आहार ग्रहण करके सरस-सरस खाता है और नीरस-नीरस परठता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है / ( उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त आता है।) विवेचन-पूर्व सूत्र के अनुसार इस सूत्र में भी आगमिक शैली से 'सुब्भि दुब्भि' शब्द का प्रयोग है। चूणि में-सुब्भि---सुभं, दुभि-असुभं अर्थ किया है। भाष्य गाथा में वण्णण य गंधण य, रसेण फासेण जं तु उववेतं / ___ तं भोयणं तु सुभि, तविवरीयं भवे दुभि // 1112 // वर्ण, गंध, रस और स्पर्श से युक्त आहार को 'सुब्भि' समझना और इससे विपरीत-वर्ण, गंध, रस, स्पर्श से हीन आहार को 'दुब्भि' समझना चाहिए / 1. पुष्फ अच्छं–वण्णगंधरसोपपेतं—पहाणं--सुभि---शुभं भद्दगं—-मणुण्णं / 2. कसायं-कलुषं-स्पर्शप्रतिलोम-अप्पहाणं-बहलं-दुभि--दुगंध-अशुभं--विवणंअमणुण्णं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org