________________ प्रथम उद्देशक] [25 47. जो भिक्षु वस्त्र में एक थेगली लगाता है या लगाने वाले का अनुमोदन करता है / 48. जो भिक्षु वस्त्र के तीन से अधिक थेगली लगाता है या लगाने वाले का अनुमोदन करता है। 49. जो भिक्षु वस्त्र को प्रविधि से सीता है या सोने वाले का अनुमोदन करता है / 50. जो भिक्षु फटे वस्त्र के एक गांठ लगाता है या लगाने वाले का अनुमोदन करता है। 51. जो भिक्षु फटे वस्त्र के तीन से अधिक गांठ लगाता है या लगाने वाले का अनुमोदन करता है। __52. जो भिक्षु फटे वस्त्र को एक सिलाई से जोड़ता है या जोड़ने वाले का अनुमोदन करता है। 53. जो भिक्षु फटे वस्त्रों को तीन सीवण से अधिक जोड़ता या जोड़ने वाले का अनुमोदन करता है। 54. जो भिक्षु वस्त्र को प्रविधि से जोड़ता है या जोड़ने वाले का अनुमोदन करता है। 55. जो भिक्षु एक जाति के कपड़े को दूसरी जाति के कपड़े से जोड़ता है या जोड़ने वाले का अनुमोदन करता है। 56. जो भिक्षु अतिरिक्त जोड़ आदि के वस्त्र को डेढ़ मास से अधिक काल तक रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है / ( उसे गुरुमासिक प्रायश्चित्त आता है / ) विवेचन-थेगली-चूहे, कुत्ते आदि के द्वारा छेद कर दिये जाने पर या अग्नि की चिनगारियों से क्षत-विक्षत हो जाने पर यदि उसका शेष भाग उपयोग में आने योग्य हो तो वस्त्र में थेगली देने की आवश्यकता होती है तथा अन्य भी ऐसे कारण समझ लेना चाहिये। एक थेगली व तीन थेगली संबंधी विवेचन पूर्ववत् समझ लेना चाहिये। ___ अविधि सीवन-वस्त्र के थेगली लगाने में सिलाई करना आवश्यक है किन्तु सिलाई में कम से कम समय लगे और अच्छी तरह प्रतिलेखन हो सके यह ध्यान रखना चाहिये / सीने के अनेक प्रकार भाष्य, चूर्णि में बताये हैं, जिनका अर्थ गुरुगम से समझ लेना चाहिये। ___ गांठ लगाना-जो वस्त्र जीर्ण नहीं हो और कहीं उलझकर या दबकर फट गया हो तो ऐसे वस्त्र की सिलाई के लिए सूई आदि तत्काल उपलब्ध न होने पर उस वस्त्र के दोनों किनारों को पकड़कर गांठ लगा दी जाती है, ऐसे गांठ लगाना जघन्य एक स्थान पर तथा उत्कृष्ट तीन स्थानों पर किया जा सकता है / यदि तीन स्थानों में गांठ देने पर भी काम आने लायक न हो सके तो सूई आदि उपलब्ध कर उसकी सिलाई कर लेना चाहिये। किन्तु तीन से अधिक गांठ नहीं लगाना चाहिये / ऊपर के सूत्र 50 से 'प्रविधि' शब्द को यहां भी ग्रहण करके उसका अर्थ समझ लेना चाहिये कि गांठ देने में भी दिखने की अपेक्षा या प्रतिलेखन की अपेक्षा अविधि न हो। इससे यह भी स्पष्ट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org