________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक 22 ध्याय का प्रमुख कारण और स्वाध्याय पद्धति, आवश्यक सूत्र एवं उसके पाठ नमस्कार मन्त्र आदि, अस्वाध्याय स्वाध्याय की प्रतिलेखन विधि एवं उपसंहार / / 15 स्वशरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित्त 418-419 स्वकीय अस्वाध्याय के दो प्रकार और उनका विवेक, मासिकधर्म, देव-वाणी, संवर-प्रवृत्ति, स्मरण स्तुति आदि की विचारणा, अति प्ररूपण दोष, विवेकज्ञान / 16-17 विपरीत क्रम से आगमों को वाचना देने का प्रायश्चित्त 419-422 शब्दों की व्याख्या, सूत्राशय का स्पष्टीकरण, व्यवहारसूत्रोक्त क्रम, "नव वंभचेर" का तात्पर्य, "उत्तमसुयं" का तात्पर्य, दोनों सूत्रों के सम्बन्ध से उत्सर्ग-अपवाद, व्युत्क्रम वाचना के दोष, सार रूप वाचनाक्रम की सूत्र सूची। 18-21 अयोग्य को वाचना देने और योग्य को वाचना न देने का प्रायश्चित्त 422-425 योग्य अयोग्य के लक्षण, वाचनाविधि, भाष्योक्त अयोग्य, हानि-लाभ / व्यक्त की परिभाषा, कच्चे घड़े का दृष्टांत, सूत्र संख्या वद्धि विचारणा, छह सूत्रों का सम्बन्धित अर्थ, प्रायश्चित्त / वाचना देने में पक्षपात करने का प्रायश्चित्त 425 सूत्राशय का स्पष्टीकरण, राग-द्वेष के भाव, हानि एवं प्रायश्चित्त / अवत्त वाचना प्रहण करने का प्रायश्चित्त 425-426 अदत्त वांचन के कारण, परिस्थितिक गम्भीर विवेक, "गिरं" का अर्थ, प्राचार्य-उपाध्याय दो शब्द क्यों ? वर्तमान में गच्छ एवं आचार्य-उपाध्यायों की स्थिति, शिष्य का विवेकयुक्त कर्तव्य। 24-25 गृहस्थ के साथ वाचना के आदान-प्रदान करने का प्रायश्चित्त 426-427 मिथ्यात्वभावित गृहस्थ, भाष्योक्त दोष, श्रमणोपासक गृहस्थ को शास्त्रवाचना सिद्धि आगामों से, लाभ की अपेक्षा से गीतार्थ का अपवाद प्राचरण / 26-35 पार्श्वस्थ आदि के साथ वाचना के आदान-प्रदान का प्रायश्चित्त 427-428 पूर्व के उद्देशों की भलावण एवं आपवादिक छूट / उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश 429 उपसंहार-उद्देशक की विशेषता किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है या नहीं है 429-430 उद्देशक 20 1-14 सकपट निष्कपट आलोचक के प्रायश्चित्त 431-439 सूत्राशय, आलोचना सुनने वाले की योग्यता सूत्रों में, आलोचना के दोष, आलोचनाक्रम, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org