________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक HT आलोचना नहीं करने की अज्ञानदशा, मायावी, प्रालोचना का महत्त्व, प्रतिसेवना के 10 कारण, दस प्रकार के प्रायश्चित्त का विश्लेषण अतिक्रम आदि चार का विश्लेषण, "तेण परं" का प्राशय, तप या छेद का प्रायश्चित्त 6 मास के आगे नहीं, उत्कृष्ट प्रायश्चित्त देने का विवेकज्ञान। 15-18 प्रायश्चित्त की प्रस्थापना में पुनः प्रतिसेवना के आरोपण 440-445 सूत्राशय, तपवहनविधि के विच्छेद की विचारणा। 19-24 दो मास के प्रायश्चित्त को स्थापित आरोपणा 445.447 सानुग्रह-निरनुग्रह प्रायश्चित्त, दो मास बीस दिन का तात्पर्य, सानुग्रह के दिन निकालने की गणित, ठाणांग कथिन पांच प्रकार की आरोपणा एवं उसका यहां प्रसंग। 25-29 दो मास प्रायश्चित्त को प्रस्थापिता, आरोपणा एवं क्रमिकवृद्धि 448-449 सूत्राशय, सानुग्रह प्रायश्चित्त अनेक बार भी, "तेण पर" की अर्थविचारणा। 30-35 एक मास प्रायश्चित्त की स्थापित आरोपणा 441-451 36-44 एक मास प्रायश्चित्त की प्रस्थापिता, आरोपणा एवं क्रमिकवृद्धि 451-453 45-51 मासिक और दो मासिक प्रायश्चित्त की प्रस्थापिता, आरोपणा एवं क्रमिकवृद्धि 453-455 उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश 455-456 उपसंहार 456-458 शुद्ध तप के अनेक विकल्प गोतार्थ से समझना एवं दी गई तालिका से विस्तृत प्रायश्चित्त अनुभव के लिए भाष्य आदि का अध्ययन, निशीथसूत्र की सम्पूर्ण सूत्र संख्या विचारणा एव निष्कर्ष, बीस उद्देशक की क्रम से सूत्रसंख्यातालिका, प्रस्तुत संपादन एवं भाष्यसूचित सूत्रसंख्या की तुलनात्मक तालिका। ( 97 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org