________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक 368-369 40-50 विराधना वाले स्थानों में मल-मूत्र परठने का प्रायश्चित्त उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश किन-किन सूत्रों के विषय का वर्णन अन्य आगमों में है या नहीं है 369-370 उद्देशक 17 1-14 कुतूहल को अनेक प्रवृत्तियों का प्रायश्चित्त 372-375 15-122 श्रमण-श्रमणी का परस्पर गृहस्थ द्वारा शरीरपरिकर्म करवाने का प्रायश्चित्त 375-376 123-124 सदश निर्ग्रन्थ निग्रंथो को स्थान न देने का प्रायश्चित्त 125-127 मालोपहत और मट्टिओपलिप्त दोष का प्रायश्चित्त 376-378 मालोपहृत का सही अर्थ एवं दोष, मट्टिओपलिप्त का अर्थविस्तार / 128-131 सचित्त पृथ्वी, पानी आदि पर से आहार लेने का प्रायश्चित्त 378-380 132 वायुकाय की विराधना से आहार लेने का प्रायश्चित्त 380-381 तत्काल धोये धोवण लेने का प्रायश्चित्त 381-386 धोवण अनेक प्रकार के, विभिन्न आगमों में धोवण वर्णन, उदाहरण रूप में सूचित आगम के कल्प्य-प्रकल्प्य धोवण की नामावलि, गर्म जल, धोवण को चख कर लेना, सोवीर और आम्लकांजिक विचारणा, शुद्धोदक का भ्रमित अर्थ एवं समाधान, साधु का स्वयं ही पानी लेना, अचित्त पानी पुनः सचित्त कब अर्थात् धोवण और गर्म पानी का अचित्त रहने का काल और उसके प्राचीन प्रमाण, तपस्या में भी धोवण पानी का विधान, सारांश / 134 . स्वयं को आचार्य लक्षणों से युक्त होने का प्रचार करने का प्रायश्चित्त 386-387 शारीरिक लक्षण कथन, अभिमान से हानि, विवेकज्ञान / 135 गायन आदि करने का प्रायश्चित्त 387-385 136-155 विभिन्न शब्द श्रवणार्थ गमन एवं आसक्ति का प्रायश्चित्त 388-390 तत, वितत आदि का अर्थ, विवेकज्ञान, १२वें उद्देशक की भलावण / - उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है या नहीं है 390-391 उद्देशक 18 392-399 1-32 नौकाविहार सम्बन्धी प्रायश्चित्त नौकाविहार के कारण अकारण, "जोयण-मेरा" का अर्थ, बत्तीस सूत्रों का अलग-अलग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org