________________ पृष्ठांक सूत्रांक विषय 31-41 पात्र आदि में प्रतिबिम्ब देखने का प्रायश्चित्त 294-296 सत्रोक्त विषयों की संगति, अनाचार, दोषों की संभावनाएं, विवेकज्ञान / 42-45 वमन आदि औषध प्रयोग करने के प्रायश्चित्त 296-297 चारों सूत्रों का आशय, बिना रोग के औषध प्रयोग से नुकसान, अपवाद सेवन सम्बन्धी विवेकज्ञान / 46-63 पार्श्वस्थ आदि की वंदना प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त 297-305 सूत्रक्रम विचारणा, अवंदनीय कोन, अपवादिक वंदन के कारण, न करने पर दोष, उत्सर्ग से वंदनीय-अवंदनीय, प्रशंसा नहीं करने का सूत्राशय, चौथे उद्देशक की भलावण, काथिक, प्रेक्षणिक, मामक, सांप्रसारिक का विश्लेषण भाष्यधार से, पासत्यादि कुल 10 की तीन श्रेणी एवं तुलनात्मक परिचय, सामान्य दोष का भी महत्त्व उपमा द्वारा, शुद्धाचारी और शिथिलाचारी की वास्तविक परिभाषा, प्रचलित समाचारियों के आगम से अतिरिक्त नये नियमों की सूची, इनसे शुद्धाचारी शिथिलाचारी की कसोटी करना उचित नहीं। 64-78 उत्पादना के दोषों का प्रायश्चित्त 305-307 उत्पादनादोष का स्वरूप, व्याख्याएं, उद्गमदोष की सम्भावना दीनवृत्ति, भिक्षु का विवेक, दोषों के प्रायश्चित्त / उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश 307-308 किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है या नहीं है 308-309 उद्देशक 14 1-4 310-313 क्रीत आदि छह उद्गमदोषयुक्त पात्र लेने का प्रायश्चित्त कृत आदि के अर्थ, क्रय-विक्रय वृत्ति के विषय में प्रागमस्थल, अनुमोदन के तीन प्रकार, गृहस्थ के उपयोग में आने के बाद क्रीतपात्र कल्पनीय, किन्तु आहार नहीं। सर्वभक्षी अग्नि की उपमा, प्रामृत्य आदि सभी दोषों का विवेचन, अनाचार, सबलदोष, विवेक और प्रायश्चित्त / अतिरिक्त पात्र गुरु आदि की आज्ञा बिना देने लेने का प्रायश्चित्त पात्रों की दुर्लभता, दूर से लाना, गीतार्थ को अधिकार, आज्ञाप्राप्ति का विवेक, व्यवहारसूत्र का विधान / अतिरिक्त पात्र देने, न देने का प्रायश्चित्त शब्दों की व्याख्या, सूत्रार्थ दो प्रकार से, विकलांग को अतिरिक्त पात्र देने का कारण, यह प्रायश्चित्त गणप्रमुख के लिए। 313-314 314-316 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org