________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक नैवेद्यपिंड खाने का प्रायश्चित्त 234-235 निश्राकृत-अनिश्राकृत दो भेद, प्रस्तुत प्रायश्चित्त निश्राकृत का, अनिश्राकृत का प्रायश्चित्त दूसरे उद्देशका में, प्राचीन दान पद्धतियां / 81-82 यथाछंद (स्वछंद साधु) को वंदना प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त 235 उत्सूत्र प्ररूपक पासत्यादि का वर्णन अन्यत्र / 83-84 अयोग्य को दीक्षा या बड़ी दीक्षा देने का प्रायश्चित्त 236-239 सूत्राशय का स्पष्टीकरण, दीक्षा के अयोग्य 20, दीक्षा के अयोग्य तीन, अयोग्य को दीक्षा देने की आपवादिक छूट और विवेकज्ञान, दीक्षा के योग्य व्यक्ति के गुण 15, दीक्षादाता गुरु के गुण, दीक्षार्थी (वैरागी) के प्रति दीक्षादाता के कर्तव्य, नवदीक्षित के प्रति कर्तव्य, परीक्षणविधि / असमर्थ से सेवा कराने का प्रायश्चित्त 239-240 अयोग्यता के लक्षण एवं विवेकज्ञान / 86.89 साधु-साध्वियों के एक स्थान पर ठहरने का प्रायश्चित्त 240-241 इस विषयक अन्य आगमस्थल, सूत्र-आशय, ठाणांग का आपवादिक विधान एवं विवेक, उत्सर्ग-अपवाद एवं प्रायश्चित्त का समन्वय / रात्रि में बासी रखे संयोज्य पदार्थ खाने का प्रायश्चित्त 241-242 प्रस्तूत सुत्र का आशय, शब्दों की व्याख्या, दो अचित्त नमक की विचारणा, प्राहार-प्रणाहार योग्य पदार्थ, प्रणाहार भी रात्रि में खाने का निषेध। . बालमरण (आत्मघात) की प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त 242-244 बालमरण के बीस प्रकार, अपेक्षा से 12 प्रकार, दो मरण का ठाणांग में विधान भी है, शब्दों की व्याख्या, प्रशंसा से हानि, पंडितमरण की प्रेरणा, शीलरक्षा हेतु वैहायसमरण आचारांग में। उद्देशक का सूत्रक्रम युक्त सारांश 244-245 किन-किन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में है या नहीं है 245-246 उद्देशक-१२ अस प्राणियों के बन्धन विमोचन का प्रायश्चित्त 247-248 शय्यातर के प्रति करुणाभाव, पशु के प्रति करुणाभाव, श्रमण समाचारी, उक्त प्रवृत्ति से हानियां, मोह और अनुकंपा के प्रायश्चित्त में अन्तर, संयम की विधिएं, नमिराजर्षि का उत्तर, परिस्थिति एवं प्रायश्चित्त विवेक, केवल आलोचना प्रायश्चित्त, खोलना, बांधना आदि 1-2 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org