________________ सूत्रांक विषय पृष्ठांक 12 11 निग्रंन्यी से अतिसंपर्क का प्रायश्चित्त 175-176 निर्ग्रन्थी से कितना सम्पर्क, उत्सर्ग और अपवाद के कर्तव्य / 12 उपाश्रय में रात्रि के समय स्त्रीनिवास का प्रायश्चित्त सूत्र का प्रसंग, अर्द्धरात्रि का तात्पर्य, "संवसावेइ" क्रिया का विशेषार्थ, अतिरिक्त सूत्र विचारणा। 13 स्त्री के साथ रात्रि में गमनागमन का प्रायश्चित्त 177 साथ जाने की परिस्थिति एवं कारण। 14-18 मूर्धाभिषिक्त राजाओं के महोत्सव आदि स्थलों से आहार लेने का प्रायश्चित्त 177-180 सूत्र परिचय, राजा के तीन विशेषण का तात्पर्य, कठिन शब्दों की व्याख्या। उद्देशक का सूत्रक्रमांक युक्त सारांश 180 उपसंहार-उद्देशक का विषय अन्य आगमों में है या नहीं ? 180-181 उद्देशक-९ राजपिड ग्रहण करने का प्रायश्चित्त 182 राजपिंड के आठ पदार्थ, तीर्थंकरों के शासन की अपेक्षा विचारणा / राजा के अंतःपुर में प्रवेश एवं मिक्षाग्रहण सम्बन्धी प्रायश्चित्त 182-183 तीन प्रकार के अंत:पुर, "अंत:पुरिया" शब्द के अर्थविकल्प, द्वारपाल से आहार मंगवाकर लेने के दोषों का वर्णन।। राजा का दानपिंड ग्रहण करने का प्रायश्चित्त 183-184 राजा के कोठार आदि को जाने बिना गोचरी जाने का प्रायश्चित्त 184-105 शब्दों की व्याख्या, वहां जाने के दोष / राजा या रानी को देखने के लिए जाने का प्रायश्चित्त 185-186 शिकार के लिए गये राजा से आहार लेने का प्रायश्चित्त 186 11 राजा जहाँ मेहमान हो वहां गोचरी जाने का प्रायश्चित्त 186-187 अल्पाहार या भोजन में राजा निमंत्रित, कठिन शब्दव्याख्या, सूत्राशय / 12 राजा के उपनिवासस्थान के निकट में ठहरने का प्रायश्चित्त 187-188 राजाओं का संसर्गनिषेध सूत्रकृतांगसूत्र में / 13-18 यात्रा में गये राजा का आहार लेने का प्रायश्चित्त 188-189 राज्याभिषेक के समय गमनागमन का प्रायश्चित्त 189 20 किसी भी राजधानी में बारंबार जाने का प्रायश्चित्त 189-190 बारंबार जाने से शंका प्रादि दोष / / 10 . 19 ( 22 ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org