Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ प्रागमतत्त्वमनीषी प्रवचनप्रभाकर श्री सुमेरमुनिजी, विद्वद्वर्य पं. रत्न मुनिश्री नेमिचन्द्रजी के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हैं, जिन्होंने निष्ठापूर्वक इस आगमकार्य के सम्पादन में सहयोग दिया है। प्रागममर्मज पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल एवं संपादनकलाविशारद साहित्यमहारथी श्री श्रीचन्दजी सुराना की श्रुतसेवानों को कैसे भुलाया जा सकता है ? जिन्होंने इस शास्त्रराज को संशोधित-परिष्कृत करके मुद्रित करने तक का दायित्व सफलतापूर्वक निभाया है। साथ ही, मैं अपने ज्ञात-अज्ञात सहयोगियों का हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने समय-समय पर योग्य परामर्श देकर मुझे उत्साहित किया है। अपने सम्पादन के विषय में क्या कहूँ ? जैसा भी, जितना भी अच्छा से अच्छा बन सकता था, 'यावबुद्धिबलोदयम्' प्रज्ञापना का सम्पादन करने का मैंने प्रयत्न किया है / मैं दावा तो नहीं करता, सर्वज्ञ महापुरुषों के पुनीत सिद्धान्त-रहस्यों को खोलने का ! मुझ जैसे अल्पज्ञ की भी आखिर एक सीमा है। फिर भी मुझे सात्त्विक सन्तोष अवश्य है कि प्रागमों के सुधी पाठकों को तथा शोधकर्ताओं को इस सम्पादन से अवश्य सन्तोष होगा। -ज्ञान मुनि जैनस्थानक वनूड [24] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org