Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रज्ञापनासूत्रे सर्वे समवेदना: ? गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे असंज्ञिनः असंज्ञिभूताम् अनियतां वेदना वेदयन्ति, तत् तेनार्थेन गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे समवेदनाः, पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! सर्वे समक्रियाः ? हन्त, गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे समक्रियाः, तत केनार्थेन एव मुच्यते-पृथिवीकायिकाः सर्वे समक्रियाः ? गौतम ! पृथिवीकायिकाः सर्वे मायिमिथ्या दृष्टय स्तेषां नियताः पञ्च क्रियाः क्रियन्ते, तद्यथा-आरम्भिकी, पारिग्रहिकी, मायाप्रत्यया, सव्वे समवेयणा) हां, गौतम ! सब समान वेदना वाले हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पुढविकाइया सव्ये समवेयणा) हे भगवन् ! किस कारण ऐसा कहा जाता है कि सब पृथ्वीकायिक समान वेदना वाले हैं ? (गोयमा ! पुढविकाइया सवे असन्नी) हे गौतम ! सब पृथ्वीकायिक असंज्ञी हैं (असन्निभूयं अणिययं वेयणं वेयंति) असंज्ञिभूत अनियत वेदना वेदते हैं से तेगटेणं गोयमा! पुढविकाइया सव्वे समवेयणा) इस कारण से गौतम ! सब पृथ्वीकायिक समवेदना वाले होते हैं।
(पुढविकाइया णं भंते ! सव्वे समकिरिया ?) हे भगवन् ! सब पृथिवीकायिक कमा समान क्रिया वाले होते हैं ? (हंता गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे समकिरिया) हां गौतम ! सब पृथ्वीकायिक समान क्रिया वाले होते हैं (से केणट्रेणं भंते ! एवं चुच्चइ-पुढविकाइया सव्वे समकिरिया) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि सब पृथ्वीकायिक समान क्रिया चाले हैं ? (गोयमा! पुढयिकाइया सव्वे) सभी पृथ्वीकायिक (माइमिच्छादिट्ठी) माथी-मिथ्यादृष्टि हैं (तेसिणियइयाओ पंचकिरियाओ कज्जंति) उनको निश्चय से पांच क्रियाएं होती हैं (तं जहा-आरंभिया, परिग्गहिया, माघावत्तिया, अपच्चक्वाणकिरिया, मिच्छा. दसणवत्तिया य) वे इस प्रकार-आरंभिकी, पारिग्राहिकी, मायाप्रत्यया, अप्रत्या समान वना छ (से केणडेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पुढविकाइया सव्चे समवेयणा १) है लगवन् ! ॥ ४॥२णे सेम ४१।। छे मा पृथ्वीय समान वेहनावामा छ (गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे असन्नी) 3 गौतम ! मा पृथ्वी ४५४ २५सकी छे (असन्निभय, अणिययं वेयणं वेयंति) मसज्ञिभूत मयत वन लोग छ (से तेणट्रेणं गोयमा ! पुढविका. इया सव्वे समवेयणा) से ४।
२३ गौतम ! ५ पृथ्वी:यि सभवनावा थाय छ (पुढविकाइयाणं भंते ! सव्वे समकिरिया ?) मान् ! ५॥ पृथ्वी थि: शु समान या हाय छ १ (हंता गोयमा ! पुढविकाइया सव्वे समकिरिया) है। गौतम ! मा पृथ्वीय समान यावा हाय छे (से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पुढविकाइया सव्वे सम किरिया) हे भगवन् ॥ ४२९४थी सेम डेवार छ : अधा पृथ्वी सभान यावा छ ? (गोयमा ! पुढविकाईया सव्वे) 3 गौतम ! मा पृथपीय (माइ मिच्छादिवो) भाथी भियाट छ (तेसिणियइयाओ पंचकिरियाओ कजति) तेभने निश्चयथी पांय याय। थाय छ (तं जहा आरंभिया, परिग्गहिया, मायावत्तिया, अपच्चक्खाणकिरिया, भिच्छा
श्री. प्रशान। सूत्र:४