Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६४
प्रज्ञापनासूत्रे
८ । संस्थानतः परिमण्डलसंस्थानपरिणता अपि १, वृत्तसंस्थानपरिणता अपि २, ज्यस्रसंस्थानपरिणता अपि ३, चतुरस्त्रसंस्शनपरिणता अपि ४, आयतसंस्थानपरिणता अपि ॥५॥२०॥१००॥सू०६॥
टीका--अथ पूर्वोक्तानामेव वर्ण गन्धरसरपर्ससंस्थानानां परस्परं संबंध परिणाम प्ररूपयितुमाह--'जे वण्णओ कालवणपरिणया ते गंघओ मुन्भिगंधपरिणया वि, दुब्मिगंधपरिणया वि 'जे' ये-स्कन्ध पुद्गलादयः पदार्थाः 'वष्णओ' वर्णतः-वर्णमधिकृत्य वर्णापेक्षयेत्यर्थः ‘कालवण्णपरिणया'- कालवर्ण परिपता:-कृष्णवर्णपरिणामवन्तोऽपि भवन्ति ते गंघओ'-ते गन्धतः-गन्धमाश्रित्य-गन्यापेक्षयेत्यर्थः, 'मुभिगंधपरिणया वि'-सुरभिगन्धपरिणता अपि भवन्ति, अथ च-'दुभिगंधपरिणया वि'-दुरभिगन्धपरिणता अपि भवन्ति, तथा स्पर्श परिणमन वाले भी हैं (लुवखफास परिणया वि) रूक्ष स्पर्श परिणमन वाले भी हैं। ___ (संठाणओ) संस्थान से (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिमंडल संस्थान परिणमन वाले भी हैं (वसंठाणपरिणया वि) वृत्तसंस्थान परिणमन वाले भी हैं (तंससंठाणपरिणया वि) त्रिकोण संस्थान परिणमन वाले भी हैं (चउरंससंठाण परिणया वि) चतुष्कोण संस्थान परिणमन वाले मी हैं (आययसंठाणपरिणया वि) आयत संस्थान परिणमन वाले भी हैं ॥२०॥ (१००) ॥सू० ६॥ ___ टीकार्थ-जो स्कंध रूप पुद्गल वर्ण से काले वर्ण चाले हैं अर्थात् कृष्णवर्ण रूप परिणति को प्राप्त हैं, उनमें से गंध की अपेक्षा कोई सुगंध वाले भी होते हैं और कोई दुर्गंध वाले भी होते हैं। यह आवश्यक qvi ५ छ (उसिणफासपरिणया वि) SuRY २५ परिणाम पmi पy छ. (णिद्धफासपरिणया वि) स्निग्ध २५श परिणाम ini पशु छ (लुक्खफासपरिणया वि) ३६ २५श परिणाम पणi पछ
(संठाणओ) सथानथी (परिमंडलसंठाणपरिणया वि) परिभ७१ सस्थान पशिाम पण ५ छ (वसंठाणपरिणया वि) वृत्तस स्थान परिणाम पाणi my छ (तंससंठाणपरिणया वि) ठिो संस्थान परिणाम ॥ ५९ छ (चउरंससंटाणपरिणया वि) यो संस्थान परिणाम वा ५५ छ (आययसंठाणपरिणया वि) ein संस्थान परिणाम पi ५४ छ । २० (१००) सूत्र ॥ १ ॥
ટીકાર્થ જે સ્કંધ રૂપ પુદ્ગલ રંગે કાળા રંગ વાળાં છે અર્થાત્ કૃષ્ણ વર્ણ રૂપ પરિણામને પામેલાં છે, એમાંથી ગધની અપેક્ષાએ કોઈ સુગન્ધ વાળાં પણ હોય છે અને કેઈ દુર્ગધુ વળાં પણ હોય છે, તે આવશ્યક નથી કે કૃષ્ણ
શ્રી પ્રજ્ઞાપના સૂત્ર : ૧