Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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नवम अध्ययन : माकन्दी
सूत्र ३६ : माकन्दी पुत्रों ने प्रसन्न और सन्तुष्ट होकर यक्ष को प्रणाम किया। फिर वे शैलक की पीठ पर चढ गए।
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उन्हें अपनी पीठ पर चढा देख अश्वरूपी शैलक यक्ष आकाश में सात-आठ ताड की ऊँचाई पर उडा और उत्कृष्ट दिव्य गति से लवणसमुद्र के बीच से जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में स्थित चम्पानगरी की दिशा में रवाना हो गया।
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36. The happy and contented sons of Makandi saluted Shailak Yaksh and rode its back.
Taking them on its back the Yaksha in the form of a horse jumped to a height of seven to eight palm trees and commenced its flight over the sea in the direction of Champa city in the Jambu continent with its divine speed.
देवी की धमकी
सूत्र ३७ : तए णं सा रयणद्दीवदेवया लवणसमुद्दं तिसत्तखुत्तो अणुपरियट्टइ, जं जत्थ तणं वा जाव एड, एडित्ता जेणेव पासायवडेंसए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ते मागंदियदारया पासायवडेंसए अपासमाणी जेणेव पुरच्छिमिल्ले वणसंडे जाव सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ, करित्ता तेसिं मागंदियदारागाणं कत्थइ सुइं वा अलभमाणी जेणेव उत्तरिल्ले वणसंडे, एवं चेव पच्चत्थिमिल्ले वि जाव अपासमाणी ओहिं पउंजइ, पउंजित्ता ते मागंदियदारए सेलणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झंमज्झेणं वीइवयमाणे वीइवयमाणे पासइ, पासित्ता आसुरुत्ता असिखेडगं गेहइ, गेण्हित्ता सत्तट्ट जाव उप्पयइ, उप्पइत्ता ताए उक्किट्ठाए जेणेव मागंदियदारगा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी
‘हं भो मागंदियदारगा ! अपत्थियपत्थिया ! किं णं तुब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमुद्दं मज्झमज्झेणं वीईवयमाणा ? तं एवमवि गए जइ णं तुब्भे ममं अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं, अहण्णं णावयक्खह तो भे इमेण नीलुप्पलगवल. जाव एडेमि ।
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सूत्र ३७ : उधर रत्नद्वीप की देवी ने लवण समुद्र के चारों ओर इक्कीस चक्कर लगाए और उसमें रहा समस्त कचरा आदि दूर कर दिया। यह कार्य सम्पन्न करके वह अपने भवन में आई। वहाँ जब उसने माकन्दी पुत्रों को नहीं देखा तो वह पूर्व दिशा के वनखण्ड में गई और सब जगह उनकी खोज की। वहाँ भी जब उनकी कोई आवाज तक सुनाई नहीं दी तो वह उत्तर दिशा के वनखण्ड में गई। फिर वह पश्चिम दिशा के वनखण्ड में भी गई, परन्तु वे कहीं भी नहीं दिखाई दिए । तब उसने अवधिं - ज्ञान प्रयोग से देखा कि माकन्दी पुत्र शैलक यक्ष के साथ लवण समुद्र के बीच से जा रहे हैं। यह देखते ही वह क्रुद्ध हो गई और अपनी ढाल-तलवार लेकर सात-आठ की ऊँचाई पर उड़कर दिव्य गति से वहाँ आई जहाँ माकन्दी पुत्र थे । वहाँ पहुँच कर बोली
CHAPTER-9: MAKANDI
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