Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 296
________________ ज्‍ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २३१ ) सूत्र १४२ : तए णं से कच्छुल्लनारए पउमनाभेणं रण्णा एवं वृत्ते समाणे ईसिं विहसि करेइ, करित्ता एवं वयासी - ' सरिसे णं तुमं पउमणाभा ! तस्स अगडददुरस्स ।' ' के णं देवाणुप्पिया ! से अगडददुरे ? ' एवं जहा मल्लिणाए । एवं खलु देवाणुप्पिया ! जंबूद्दीवे दीवे भारहे वासे हत्थिणाउरे दुपयस्स रण्णो धूया, चुलणीए देवीए अत्तया, पंडुरस सुण्हा पंचन्हं पंडवाणं भारिया दोवई देवी रूवेण य जाव उक्किट्ठसरी । दोवईए णं देवीए छिन्नस्स वि पायंगुट्ठयस्स अयं तव ओरोहे सयमं पि कलं ण अग्घइति कट्टु पउमणाभं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता जाव पडिगए। सूत्र १४२ : यह प्रश्न सुनकर नारद कुछ मुस्कराये और बोले - "हे पद्मनाभ ! तुम तो कुए के उस मेंढक के समान हो ।" पद्मनाभ - "देवानुप्रिय ! कैसा कुए का मेंढक ?" नारद ने कुए और समुद्र के मेंढक की कथा सुनाई ( अ. ८-सू-११0 के मल्ली अध्ययन अनुसार समझें ) और बोले - " देवानुप्रिय ! जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के हस्तिनापुर नगर में द्रुपद राजा ' की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा, पाण्डु राजा की पुत्रवधू और पाँच पाण्डवों की पत्नी द्रौपदी देवी रूप, लावण्य, शरीर आदि में उत्कृष्ट है । तुम्हारा यह सारा अन्तःपुर द्रौपदी के पैर के कटे हुए अँगूठे के शतांश की बराबरी भी नहीं कर सकता।" इस कथन के पश्चात् नारद ने राजा से विदा ली और प्रस्थान किया। 142. Kacchull Narad smiled and said, “Beloved of gods! Your statement gives an impression that you are as ignorant as a frog in a well." Padmanaabh, “Beloved of gods ! what is a frog in a well?” Narad told the story of the frogs (Ch. 8 para 110 ) and added, “In Hastinapur in the Bharat area of the Jambu continent, Draupadi, the daughter of king Drupad and queen Chulni, the daughter-in-law of King Pandu, and the wife of the five Pandavs, is extremely beautiful, charming, (etc.). The beauty of all your queens combined stands nowhere in comparison with the amputated large toe of Draupadi's feet." after saying so Narad took leave of the king and left. पद्मनाभ की आसक्ति सूत्र १४३ : तए णं. से पउमनाभे राया कच्छुल्लनारयस्स अंतिए एयमहं सोच्चा णिसम्म दोवईए देवीए रूवे य जोव्वणे य लावण्णे य मुच्छिए गढिए गिद्धे अज्झोववन्ने जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, पोसहसालं जाव पुव्वसंगइयं देवं मणसीकरे-माणे - मणसीकरेमाणे चिट्ठ | CHAPTER - 16 : AMARKANKA 5000 Jain Education International For Private Personal Use Only ( 231 ) www.jainelibrary.org

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