Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 340
________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्卐 उपसंहार ज्ञाता धर्मकथासूत्र की इस सोलहवीं विस्तृत कथा में अनेक चरित्र हैं तथा अनेक घटनाएँ। इन डा र सब के माध्यम से प्रतिष्ठा, वासना, भय, आसक्ति, कौतुहल आदि भावनाओं से प्रेरित व्यक्ति टा 15 सन्मार्ग से कैसे भटक जाता है इसका रोचक चित्रण है। विवेक नष्ट होने पर कैसे कष्ट उठाने दी र पड़ते हैं यह वर्णन कर सन्मार्ग की ओर प्रेरित किया गया है। CONCLUSION This sixteenth story of Jnata Dharma Katha is very long and has numerous characters and incidents. With the help of all these the story 15 explains how a man drifts away from the spiritual path under the influence < 5 of a variety of feelings and attitudes, including conceit, lust, fear, fondness, SI > and curiosity. How much one suffers when he takes leave of his rationality has been detailed in an interesting style in order to inspire one to accept the Bright path. DUDUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण | उपनय गाथा_ सुबहू वि तव-किलेसो, नियाणदोसेण दूसिओ संतो। न सिवाय दोवतीए, जह किल सुकुमालियाजम्मे॥१॥ अमणुन्नमभत्तीए, पत्ते दाणं भवे अणत्थाय। जह कडुयतुंबदाणं, नागसिरिभवंमि दोवईए॥२॥ तपश्चर्या का कोई कितना ही कष्ट क्यों न सहन करे किन्तु जब वह निदान के दोष से दूषित दी र हो जाती है तो मोक्षप्रद नहीं होती, जैसे सुकुमालिका के भव में द्रौपदी के जीव का तपश्चरण S र मोक्षफलदायक नहीं हुआ॥१॥ र अथवा इस अध्ययन का उपनय इस प्रकार समझना चाहिए-सुपात्र को भी दिया गया आहार | र अगर अमनोज्ञ हो और दुर्भावपूर्वक दिया गया हो तो अनर्थ का कारण होता है, जैसे नागश्री टा 15 ब्राह्मणी के भव में द्रौपदी के जीव द्वारा दिया कटुक तुम्बे का दान॥२॥ P CHAPTER-16 : AMARKANKA ( 273 ) दा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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