Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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अठारहवाँ अध्ययन : सुंसुमा : आमुख
5 शीर्षक-सुंसुमा-नाम विशेष। इस कथानक का एक पात्र है सुंसुमा। इसके अपहरण और हत्या से प्रकट किया दा र है मनुष्य का चरम अधःपतन। और उसकी मृत देह के मांस द्वारा प्राण रक्षा करने की घटना से इंगित किया है | र साधना पथ पर चरम अनासक्ति के भाव से साधना हेतु देह रक्षा करने की ओर। यह मार्मिक कथा प्रतीकात्मक है, था (भाव की गहराई पर पहुंचने का संकेत है। २ कथासार-राजगृह नगर में धन्य सार्थवाह अपने पाँच बेटों तथा एक बेटी सुंसुमा सहित रहता था। उसके यहाँ 5 र चिलात नाम का एक नौकर कन्या सुंसुमा की देख-रेख के लिए रहता था। वह सुंसुमा को गोद में लिए मुहल्ले के ही (अन्य बच्चों के साथ खेलता रहता था। पर दुष्ट चंचल प्रकृति होने के कारण वह अन्य बच्चों को सताता रहता 5था। पड़ोसी धन्य के पास शिकायत करते थे। एक दिन तंग आकर धन्य ने चिलात को मार पीटकर निकाल दिया। द र चिलात वहाँ से निकल घूमता-घामता निकटवर्ती सिंह-गुफा नाम की चोर बस्ती के अधिपति विजय चोर की थी र शरण में चला गया। धीरे-धीरे विजय से चोरी की कलाएँ सीख वह उसका मुख्य सहायक बन गया। विजय कीट 5 मृत्यु के पश्चात् चोरों ने उसे ही मुखिया बना दिया। 2 मुखिया बनने के बाद चिलात ने एक दिन धन्य सार्थवाह के यहाँ डाका डाला। अन्य सभी चोरों को उसने 5
सारा धन लेने को कहा और स्वयं सेठ की कन्या सुंसुमा पर अधिकार कर लिया। सेठ नगर रक्षकों सहित चोरों 15के पीछे गया। सैनिकों ने चोरों को तितर-बितर कर सारा माल बरामद कर लिया। किन्त चिलात संसमा को लिए
बीहड़ में चला गया। धन्य अपने पाँचों पुत्रों सहित चिलात के पीछे बीहड़ में प्रवेश कर गया। चिलात ने देखा कि ड 2 सुंसुमा के कारण वह पकड़ा जायेगा तो उसने सुसुमा का शिरच्छेद कर दिया। धड़ को वहीं छोड़ वह बीहड़ में 5 ए और आगे निकल गया और वहाँ भूख प्यास से मर गया। र धन्य चिलात को खोजता-खोजता अपने पुत्रों सहित उस स्थल पर पहुंचा जहाँ सुसुमा की मृतदेह पड़ी थी। डा 2 पुत्री के शोक में कुछ देर तो वह विलाप करता रहा पर फिर चिलात को खोजने लगा। बहुत खोजने पर भीड र चिलात नहीं मिला तो वह अपने पुत्रों सहित वापस उसी स्थान पर आया जहाँ सुसुमा की देह पड़ी थी। 5 भोजन-पानी की उपलब्धि न होने के कारण धन्य को लगा कि उसका वापस राजगृह लौटना असंभव है। उसने ट 5 अपने पुत्रों से कहा कि वे उसे मार डालें और उसके मांस से भूख मिटा किसी तरह राजगृह पहुँच जाएँ। पुत्रों ने द 2 मना कर दिया और स्वयं अपना बलिदान करने को कहा। अंततः धन्य ने यह निर्णय लिया कि सुंसुमा की देह ड र प्राणविहीन हो ही चुकी है-उसी से क्षुधा शान्त कर सभी को अपने गंतव्य तक पहुँचना चाहिये। वे सभी इस उपाय 15 से वापस लौटने में सफल हुए। र धन्य व उसके पुत्रों ने अंत में दीक्षा ले ली और देवलोक में जन्मे।
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LCHAPTER-18 : SUMSUMA
(301)
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