Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 430
________________ प्रज्ज्ज्ज्ज्ज्ज ( ३५७ ) ) जाव विपुलेणं पुप्फवत्थ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्त-णाइ-णियग-सयणसंबंधि - परियणस्स पुरओ कालियं दारियं सेयापीएहिं कलसेहिं ण्हावेइ, हावित्ता सव्वालंकारविभूसियं करेइ, करित्ता पुरिससहस्सवाहिणीयं सीयं दुरूहेइ, दुरूहित्ता मित्त-णा - णियग-सयण-संबंधि-परियणेणं सद्धिं संपरिवुडा सव्वड्डीए, जाव रवेणं आमलकप्पं नयरिं मज्झमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव अंबसालवणे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ) छत्ताईए तित्थगराइसए पासइ, पासित्ता सीयं ठवेइ, ठवित्ता कालियं दारियं सीयाओ पच्चोरुहेइ । तए णं कालिं दारियं अम्मापियरो पुरओ काउं जेणेव पासे अरहा पुरिसादाणीए तेणेव ) उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं वयासी द्वितीय श्रुतस्कंध धर्मकथा सूत्र २१ : काल गाथापति ने विपुल आहार सामग्री तैयार कर मित्रों, परिजनों आदि को निमंत्रण दिया। उनके आने पर आवश्यक कार्यों से निवृत्त हो विपुल पुष्प, वस्त्र, गंधादि से उसने ) अतिथियों का सत्कार-सन्मान किया। फिर उन सभी के सामने सोने-चाँदी के कलशों में भरे पानी से काली को स्नान करवाया और वस्त्रालंकारों से विभूषित किया। उसे पुरुषसहस्रवाहिनी पालकी पर बैठाकर मित्रों, स्वजनों आदि के साथ अपनी सम्पूर्ण ऋद्धि सहित गाजे-बाजे से आमलकल्पा नगरी के बीच में होते हुए आम्रशालवन की ओर प्रस्थान किया । वहाँ पहुँचकर तीर्थंकर के अतिशय देखे । पालकी रुकवाकर काली को नीचे उतारा और उसे आगे कर उसके माता-पिता पुरुषादानीय अर्ह (पार्श्वनाथ के निकट गये। उन्हें यथाविधि वन्दना - नमस्कार कर वे बोले 21. Citizen Kaal made arrangements for a great feast and invited all his family members, relatives, and friends. When they arrived he got ready after bathing (etc.) and greeted and honoured his guests by offering them flowers, dresses, perfumes, etc. In their presence he anointed Kali with water poured from gold and silver urns and got her properly dressed and adorned with Dornaments. He helped her into a Purisasahassa palanquin. Accompanied by Dall his guests, and with all due grandeur, and pomp and show, he moved through the city of Amalkalpa towards the Amrashalvan. When he reached there, he witnessed the divine signs associated with the Tirthankar. He then got Kali down from the palanquin and, keeping her in the lead, arrived near Arhat Parshvanath. After offering due obeisance, the parents submitted सूत्र २२ : 'एवं खलु देवाणुप्पिया ! काली दारिया अम्हं धूया इट्ठा कंता जाव किमंग पासणयाए ? एस णं देवाणुप्पिया ! संसार भउव्विग्गा इच्छइ देवाणुप्पियाणं अंति मुंडा भ २णं जाव पव्वइत्तए, तं एयं णं देवाणुप्पियाणं सिस्सिणीभिक्खं दलयामो, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया ! 'सिस्सिणीभिक्खं ।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेह ।' SECOND SECTION: DHARMA KATHA Jain Education International For Private Personal Use Only ( 357 ) www.jainelibrary.org

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