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सूत्र ५८ : एवं जाव घोसस्स वि एए चेव छ-छ अज्झयणा ।
सूत्र ५८ : इसी प्रकार छह-छह अध्ययन हरि, अग्निशिखा पूर्ण, जलकान्त, अमितगति, वेलम्ब और घोष नाम के इन्द्रों की अग्रमहिषियों के हैं।
१३-५४ अज्झयणाणि १३-५४ अध्ययन
CHAPTERS 13-54
58. Similarly there are six chapters each for the principal queens of the Indras named Hari, Agnishikha, Purn, Jalakant, Amitgati, Velamb, and Ghosh.
सूत्र ५९ : एवमेते दाहिणिल्लाणं इंदाणं चउप्पण्णं अज्झयणा भवंति । सव्वाओ वि वाणारसीए महाकामवणे चेइए
सूत्र ५९ : इस प्रकार दक्षिण दिशा के इन्द्रों के चौपन अध्ययन हैं। इन सबकी कथा वाराणसी के महाकामवन चैत्य से ही आरम्भ होती है।
भगवान ने तीसरे वर्ग का यही अर्थ कहा है।
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
59. Thus there are fifty four chapters about the Indras of the south. All these stories start from the Mahakamavan of Varanasi.
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This is the meaning of the third section as told by Shraman Bhagavan Mahavir.
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॥ १३-५४ अज्झयणाणि समत्तं ॥
॥ १३-५४ अध्ययन समाप्त ॥
|| END OF CHAPTER 2-611
॥ तइअं वग्गो समत्तो ॥
॥ तीसरा वर्ग समाप्त ॥
|| END OF THIRD SECTION ||
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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