Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 428
________________ प्रज्ज्ज्ज द्वितीय श्रुतस्कंध धर्मकथा सूत्र १७ : तए णं सा काली दारिया धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा समाणी एवं जहा दोवई जाव पज्जुवासइ । तए णं पासे अरहा पुरिसादाणीए कालीए दारियाए तीसे य महइमहालियाए परिसा धम्मं कहे | सूत्र १७ : वाहन पर सवार हो कर वह वहाँ पहुँची जहाँ भगवान पार्श्वनाथ विराजमान थे। फिर वह द्रौपदी के समान भगवान की वन्दना - उपासना करने लगी। भगवान ने काली तथा उपस्थित जनसमूह को धर्मोपदेश दिया। 17. She arrived at the spot where Arhat Parshvanath was sitting. She paid her homage and did worship as done by Draupadi (ch. 17). Bhagavan gave his discourse before Kali and the large audience. ज्ज्ज् ( ३५५ ) सूत्र १८ : तए णं सा काली दारिया पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म हट्ठ जाव हियया पासं अरहं पुरिसादाणीयं तिक्खुत्तो वंदइ नमसइ, वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी-'सद्दहामि णं भंते ! णिग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वयह, जं णवरं देवाणुप्पिया ! अम्मापियरो आपुच्छामि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए जाव पव्वयामि ।' 'अहासुहं देवाणुप्पिए ? ' सूत्र १८ : काली नाम की उस कन्या ने अरिहंत पार्श्वनाथ का धर्मोपदेश सुनकर उसके मर्म को समझकर प्रसन्नचित्त हो उन्हें तीन बार यथाविधि वन्दना - नमस्कार किया । फिर वह बोली- “ भन्ते ! मैं निर्ग्रन्थ वचन पर श्रद्धा करती हूँ। आपने जो कहा है वह अक्षरशः सत्य है । हे देवानुप्रिय ! मैं अपने माता-पिता से अनुमति ले लेती हूँ और तब मैं आपके पास दीक्षा ग्रहण करूँगी।” भगवान ने कहा- " - "देवानुप्रिये ! जिसमें तुम्हें सुख मिले वही करो। " 5 Jain Education International 18. Kali was pleased and satisfied to hear and grasp the meaning of the discourse. She offered salutations to Arhat Parshvanath three times and said, “Bhante! I have faith on the word of the Nirgranth (the Omniscient ). What you have said is the absolute truth. Beloved of gods! I would get permission from my parents and come back to get initiated in your order." Bhagavan replied, "Beloved of gods! Do as you please." सूत्र १९ : तए णं सा काली दारिया पासेणं अरहया पुरिसादाणीएणं एवं वृत्ता समाणी जाव हियया पासं अरहं वंदइ, नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूह, दुरूहित्ता पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स अंतियाओ अंबसालवणाओ चेइयाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव आमलकप्पा नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आमलकप्पं णयरिं मज्झमज्झेणं जेणेव बाहिरिया उवट्टाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियं जाणपवरं SECOND SECTION: DHARMA KATHA (355) For Private Personal Use Only फ www.jainelibrary.org

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